SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनशिलालेख-सग्रह [२२२ ૨૨૨ कोल्हापुर ( महाराष्ट्र) १२वीं सदी-पूर्वाध कचड महालक्ष्मी मन्दिरमे छतके खम्भोंपर [यह लेख शिलाहार गजा गण्डरादित्यके समयका है। इनके सामन्त निम्बने एक चैत्यालय बनवाया था। नाकिराजको कन्या कर्णादेवीका भी उल्लेस है जो एक रानी थी। कोण्डकुन्दान्वयके माधनन्दि आचार्यका भी उल्लेख है। [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० ३५१ ] २२३ तिरुनिलुकोण्डै ( मद्रास) सन् ११३७, तमिल [ यह लेख कुलोत्तु ग चोलदेव (द्वितीय ) के राज्यवर्प ४ मे लिखा गया था। आलप्पिरन्दान् मोगन् उपनाम कुलोत्तुगशोलकाडवरायन्-द्वारा कच्चिनायनार (चन्द्रप्रभ) की पूजाके लिये जननाथमगलम् गांवके उत्पन्न से ४२० कलम् (नापका प्रकार ) चावल अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेस है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० ० ३११ पृ० ६६ ] २२४ गणपवरम् ( गुण्टूर, आन्ध्र) ११वी-१२वीं सदी, तेलुगु [ यह लेस थावण शु० ३ का है -शकवपके अक लुप्त हुए है। कुलोतग राजेन्द्रके पुण्यवृद्धि के लिए अक्कसाल कामोजु-द्वारा कुछ दान दिये जानेका इममें उल्लेख है। अन्तम चन्द्रप्रभजिनालयका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१५-१६ पु० ४३ क्र०४५८]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy