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________________ -२२० ] शेरगढका लेख २२० शेरगढ़ ( कोटा, राजस्थान ) सवत ११९१ = सन् ११३५, संस्कृत - नागरी १ माहिल मार्यान्तिमा —स्य तिलके सूर्याश्रमं प (च) ने । श्रीपाली गुणपालकडच चिy १६१ २ ले मण्डि (लवा) ले कुले सूर्य (र्या) चन्द्रमसाविवाम्बरतले प्राप्ती क्रमान्मालवे ॥१॥ श्रीपाकादिह देवपालतनयो डानंन चिन्तामणि (:) शा ३ (नेः श्री ) गुणपालक्कुरसुनाद् रूपण कामोपमात् । पूर्नामर्थजनकप्रभृतय पुत्राञ्च येा नव तैः सर्वैरपि कोशवर्धनत ४ ले रत्नत्रय कारित ( ) ॥२॥ वर्षे रुद्रशतैर्गत शुभतमैरकानवस्याविकैर्वैशाग्न (ख) धत्रले द्वितीय दिवसे देवान् प्रतिष्ठा५ पितान् । चन्द्रन्ते नतदेवपालतनया माल्हूमधान्वादय पूनशान्तिसुतश्च नेमिमरता श्रीगान्तिमत्कुन्थ्वरान् । ७ ६ ॥ ३ ॥ द्वादिसूत्रधारोत्पन्नः शिलाश्रीसूत्रधारिणा । शान्तिकुन्थ्वरनामानां जयन्तु घटिता जिना: ॥ ४॥ देवपालसु तेल्हुक गोष्टिवीमललल्लुक मोक हरिश्चन्द्रादि गागासुपुत्र () अल्लक ॥२॥ सवत १९९१ साप सुटि (म) - ८ गलढिने प्रतिष्ठा कागपिता ॥ a ११ [ यह लेख वैगाज शु० २, मंगलवार, मवत् ११९१ का है । इम नमय ग्नण्डिल्लवाल कुलके शान्तिके पुत्रोने रत्नत्रय अर्थात् गान्ति, कुन्थु तथा अर इन तीन तीर्थकरोकी मूर्तियां स्थापित की थी । इनका निर्माण सूत्रवार दादिके पुत्र शिलाश्रीने किया था ।] [ ए० इ० ३१ पृ० ८३]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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