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________________ -2101 श्रदुर्गधंदका लंग १० २१७ बहरीचंद (जि० जबलपुर, मध्यप्रदेश) १२वीं मढी-पूर्वाध, संस्कृत-नागरी म्वमि · 'यदि ममि श्रामदगयाकर्णविनयगज्य राष्ट्रफटकटोटमवमहापामनाधिपतिश्रीमढगाहणावस्य प्रयर्थमानम्य ॥ श्रामदादापूर्वाम्नाय बंप्रमाटिकायामुमनाम्नाय नगाािमणिश्रीमन्मावर नदिनानुगृहीतः माधुश्रीमघर: नम्य पत्र. मला मान धर्मदानाव्यानगम ननंद काग्निं रम्यं मानिनाम्य मंदिरं ॥ बन्नात्यममाफमृत्रबाग श्रेष्ठिनामा विनानं च महाम्वनं निर्मिसमनिमुंदर ॥ श्रीबह कगचार्यानायदंगागणान्यं नमन रियाबिनयानंदिनविननाः प्रतिष्ठाचार्यश्रीमन्मुभद्राग्चिा नयंत ॥ [ यह रोग कलचुरि, गजा गगकर्णी. मामन्त राष्ट्रकुट गोलणदक रासमान लिया गा है। घलप्रमाटिका गाँव गांग्लापूर्व पानिका महानीन नामक धात्रक था नामाववनन्तिक मिय गवघरका पुत्र था। नगन मालिनायका एक मुन्दर मन्दिर बनवाग। म मन्दिरकी प्रतिष्ठा चन्द्रकगत्रार्याम्नार देगीगणक वाचार्य महक हाथी हुः श्री।] [निकायम वाफ दि करचुरि-चदिए पृ० ३०० ] २१८ आदिनाथमन्दिर, नाढलाई (जि० देगर्ग, गनपान ) मंत्रन १९८१ = मन. ११६३, मंगान-नागर्ग १ ओं ॥ वन. 11८० माघमुहिपंचम्या श्रीचाळमानान्चय श्री महागनागिन (रायपा)न्छ
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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