SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -:..] विन्ट न लेन चाहन्नाट विना विकदिन ( गालन गन्नाट बना कर (टमठि गर यान का नाशबंका न्हा ई पनी गन्ध नयाान गई शा। बैंट मात्र मन्त्री था। हुन पन्नी ली। उननं अन्वृन्द ब्राहीर कटन्ग दिर नाग ना उन्न निश्निं कुछ - हाई। दिन्न उबडिव लगन्न नी मगदर्गः कुन महाभ-की कुछ मांन बान दी । न्दन्नन्दादी मान्न पानीगना है। दुमका बह नन्दिर नाव नाहै नय बार्शी रजा भग्नं है।] [re ई०९ पृ० २५६] कवितंगुतम् (गन्नाइ, न्द्रार) ___मन.११:५, नलिन [सन्न टिई यि तय परिवगागरमिलाइरह लन रिबनवान कृलालूंगालव ४८ वांग है । कुन्बर १ नावागग लिए एक नया मुबर्ग विमान बनवानेका हुन् निग है। कुल्टनर गांव बबलनाडपर्नग अगाट्टिन्क बिगा । दुर्ना लन्द गिरिति ढंढ नग एक की तबिकी भूनिगाग न्यानाकानलंय है। मन्दिरकं लिए जर्मन लार प्यान दि नं दान दिन गग । इन लन्त्री तमिल भाषा माहित्यिक दृष्टि वृतःच्छी है।] [इ० म० गन्नाड १३ ] एहाने (बिगर, महर) चालुक्य विक्रमवयं १४=मद 111°, कढ़ [ट्ट लेन्द्र बिन्द्रदमन्द्र विक्रमटिया सन्म या ट ३, १०
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy