SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - १८३ ] हरण आदि के लेख ८ न्तं द्विविजविनवमं मन्द नामावि वम्मं ॥ पतिहियवृत्तियां९ विन् अप्रतिमन् एनल दिविज पद्मं महीपनियोढने १० कूडि पोक्कं चतुरं मामावि बम्मन' 'आ नेगल्द भूमि ११ य मुन्नाल्डगं मले लाक्षियं माध्य देनेवाल्डनोडने सग्गम१२ नू आल्ड व्यन्दु चम्म [ इस लेखमें मगनावि वम्मं नामक व्यक्तिके देहत्यागका वर्णन है | अपने स्वामीको मृत्यूपर खेद व्यक्त करनेके लिए उम्रने सम्भवत देहत्याग किया था । यह प्रथा होयमल राजाओंके नमय रूढ थी । लेखकी लिपि ११ वी सदीकी प्रतीत होती है । ] B [ ए०रि० मं० १९४३ पृ० ५९ ] १८३ हहण ( मैनूर ) १२वीं सदी-प्रारम्भ, कन्नड [ इस लेखम होननन राजा बल्लाल १के समन मरियाने दण्डनायक द्वारा एक जिनमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । आचार्य शुभचन्द्रका नी इसमें टल्लेख है । ] १८४ १३१ [ ए०रि० मं० १९१८ पृ० ४५ ] चिकमगलूर (मैसूर) शक १०२० = सन् ११०१, कन्नड व १०२० नेय १ सच्चन २ विक्रमसंवत्परद फाल्गुन शु (8) ३ सोमवारदंड द - विन
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy