SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनशिलालेग-संग्रह प्रयोजनको दृष्टिमे ये लेप मुख्यत चार भागों में वाटे जा सकते है -८७ लेयाम जिनमन्दिरीके निर्माण अथवा जीर्णोद्वारका वर्णन, १२६ लगाम जिनमूतियोंकी स्थापनाका वर्णन है, २०८ रेपोमे मन्दिरी तथा मुनियोको गाँव, जमीन, मुवर्ण, फरीकी आय आदियो दानका वर्णन है, तथा १६४ लेसोमें मुनियो, गृहग्यो तथा महिलाओके ममाविमरणका उत्टेग्य है। इसके अतिरिक्त १३ लेपोमें गृहा-निर्माणका, ४ लेगोम (० ४८६, ४८७, ४८९ तथा ५७६ ) मठोके आर्थिक व्यवहारोका, ३ लेग्योम (० ४२५, ४७१ तथा ४७२) माम्प्रदायिक ममझोतोका एव एक लेप (क० ५०७) मे मामाजिक कुढिके निवारणका वर्णन है। लेसोके इस स्थूल परिचयके बाद हम इनसे प्राप्न ऐतिहामिय तथ्यांका कुछ विस्तारसे अवलोकन करेंगे- पहले जैनमधक वारेमें तथा बादमे राज. वशी आदिके विपयमे। २.जेनसंघका परिचय (भ) यापनीय सघ-प्रस्तुत सग्रहम यापनीय सघका उरलेग योई १७ लेसोमें हुआ है। इनमें मवगे प्राचीन लेप गग राजा अविनीतका ताम्रपत्र है जो छठी सदीके पूर्वार्षफा है (ले० २०) । इमम 'यावनिक' सप-द्वारा अनुष्ठित एक मन्दिरके लिए राजा-द्वारा कुछ दान दिये जानेका वर्णन है। उम मघके कुमिलि अथवा कुमुदि गणका उरलेप चार लेगाम है' (क्र. ७०, १३१, ६११ एव ६१२)। इनमें पहले लेप (क्र. ७०) में नौवी मदीमें इम गणके महावीर गुरंग शिप्य अमरमुदल गुगका यणन है। इन्होंने कोरप्याकम् ग्रामके उत्तरमे देशवरलभ जिनालयका निर्माण 1. पहल मप्रहके ३० ९९, १०० तथा १०५ लेसोम ५वी सटीक उत्तराधमें भी यापनीय संघका उल्लेस है। २. पहले सग्रहमें इस गणका कोई उल्लेस नहीं है।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy