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________________ १२१ जैनशिलालेस-संग्रह [१७१ इनगुन्द (विजापूर, मैसूर) RE, 1वीं सदी उत्तराध [इस लेखमें चालुक्य सम्राट् त्रिभुवनमल्लदेव (विक्रमादित्य पष्ठ) का उल्लेख है। तिथि शक ९ दी है। मूलसंध-देशीय गण-पुस्तक गच्छकुन्दकुन्दान्वयके ( इन्द्र)गदिके शिष्य वाहुबलि आचार्य द्वारा एक जिनमन्दिर बनवानेका तथा उस मन्दिरके लिए कुछ भूमिदान प्राप्त करनेका इसमें उल्लेख है। [ मूल लेख कन्नडमें मुद्रित ] [सा० इ० इ० ११ पृ० १४१ ] तोललु ( मैसूर) काह, वीं सदी उत्तरार्ध १ स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर "त्रिभुवनमल्ल तलका २ क्रमाडि बिहन्दुः ३ नसुविरि ५-७ (ये पक्कियाँ विस गयी हैं) ८ स्वस्तिश्रीमतु चोलक बसटिगेनाहु . ९ . • १० हिरिय मुद गनुण्ड · गनुण्ड बिलग "कुड बलवनड' "धुण्ड दूरवर भोक्कल १२ "उत्तराण संक्रान्तियन्दु नबिलू. १. नेमिचन्द्रपण्डिवा धारापूर्वक माडि कोहरु आ१४ नविलोलगे आवनागि-बदुकववनु "हण १५ चेन्दु हिडिसिव""हन्नोन्दु १६ तलेयं नरकटल्लिलिवर गगेयतडियलि कविळे
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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