SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ जैनशिलालेस-सग्रह [१६८राजाका शिरच्छेद किया था के १६३ वर्षमें यह लेख लिखा गया था। इसमे जननाथपुरमके दो जैन मन्दिर चेदिकुलमाणिक पेरुम्बल्लि तथा गगालसुदर पेरुम्बल्लिका उल्लेख है।] [इ० म० तजोर १००३ ] ११८ दोणि ( धारवाड, मैसूर) चालुक्यविक्रम वर्ष २० = सन् १०९६, कबड [ यह लेख फाल्गुन शु० १३ गुरुवार, चालुक्यविक्रम वर्ष २० के दिन लिखा गया था। सम्राट् त्रिभुवनमल्ल (विक्रमादित्य पष्ठ ) के राज्यका यह लेख है। इस समय यापनीय सघ-वृक्षमूल गणके मुनिचन्द्र विद्य भट्टारकके शिष्य चारकीति पण्डितको सोविसेट्टि द्वारा एक उद्यान दान दिया गया था। [ मूल लेख कन्नड मुद्रित ] [सा० इ० इ० ११ पृ० १६९] १६६-१७० तुम्बदेवनहल्लि (मैसूर) चालुक्यविक्रम वर्ष २१ = सन् १०९६, कन्नड , श्रीमदेरेयंगदेवर असबब्बर(लि)माडिसिद बसदि मंगल महा श्री २ स्वस्ति समस्तसुरासुरमस्तकमणिमकुटरश्मिरजितचरणप्रस्तुत जिनेन्द्रशासन३ मस्तु चिर सकलमन्यचन्द्रजनाना (१) मदमस्तु जिनशासनाय समजतां प्रति४ विधानहेतवे भन्यवादिनदहस्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटी यसे । (२)
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy