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________________ ११६ जैनशिलालेग्न-सग्रह [ १६५ ९ विभूमीश्वरसधातोत्तमागाभरणमणिगणज्योतिरतंसमास्य चरणं सामान्यने भूपरोलपगत विद्विट्कदव नोय ॥ ३ वचन ॥ एनिमिट पोगल्लंग नेगल्लंग नलय १० निसि ॥ ॥ श्ररसुगुणगल मंयूवेत्तिरं पगे मिगदिने जनानुराग पिरिदा गिरं कीर्तिलतिके निमिरुत्तिरं वीरनोलयन घनता रिक ॥ च॥ पुरहु[ भू]नूल्म बनवामंपनिर्झामरसु ११ म सान्तलिगेमा सिरमुम कहर मासिरमुमं सुखसंकथाविनोडदि प्रतिपालिसुन्तमिरे । तत्पादपद्मोपजीवि । समधिगतपंचमहाशब्द महासामन्ताधिपतिं महाप्र १२ चण्डडण्डनायक रिपुमस्तकन्यस्तसायकं साहित्यविद्यांगना भुजग सरस्वती मुसकमलभृगनाराधितहरचरणस्मरणपरिणतान्त. करण | सरस्वती कर्णाभरणं १३ श्रीमन्महाप्रधान मनेवेगं दण्डनायकनरयमस्य ॥ कंद्र ॥ सकलकलावा ब्रह्मकुलाकं वत्पगोत्रग्नाकरशीतकरं किरियने भुवनप्रकरटोल १४ रिमृत्युभूपनेरेगचभूपं ॥ ५ वृ ॥ एलेयालु सादृश्यमप्प देरेगविभुंगे विणुपिंगे गुणपिंग ति पिंगले पारावारमिंहाचलमचसुरणि रामनि कृर्णानि सचलम १५ ष्टिमीरमगुरुवयागिलवारथ्यं वेदले बेरोन्दन्धि बेरोन्दनिमिषनगमंचानुमुटेप्पो डवकुं ॥ ६ कट ॥ परिकिपोढे दस्तिमशकान्तरमेनिपुडु तन्न १६ गुणट नेगल्टर गुणदन्तरमेने गुणेषु को मत्सर एव बुधोक्त एरंगविभुगे सदुक्तं ॥ ७ सद्मलकीर्तिवस्करि दिशान्तरमं तेरपिल्लदन्तु पर्विदुदु पराक्रमं
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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