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________________ ११४ जैनशिलालेख-सग्रह [१६२ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्द्र) चालुक्यविक्रमवर्ष ६ सन् १०४०, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्लके राज्यवर्ष ६, पुष्य ब० (६) गुरुवार, दुर्मविसवत्सरका है। इस समय महामण्डलेश्वर जोयिमय्यरसको पली नाविकन्वेने कोण्डकुन्देयतीर्थमें चट्टजिनालयका निर्माण किया तथा उसे कुछ भूमि दान दी थी।] [रि० सा० ए० १९१५-१६ क्र. ५६५ पृ० ५५] १६३ मलनावर ( धारवाड, मैसूर) शक १००३- सन् १०८१, कन्नड [यह लेख शक १००३ का है। कदम्ब राजा गोवलदेवके समय मलनावरके जैन वसदिके लिए नरसिंगय्य सेट्टि द्वारा कुछ दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है । [रि० सा० ए० १९२५-२६ क्र. ४७० पृ० ७८] १६४ बनवासि ( मैसूर) पल १०८१, कन्नड [ यह लेख कादम्बचक्रावति वीरमके राज्यवर्ष १२, दुर्मति संवत्सरमें कार्तिक कृ० ५, सोमवारके दिन लिखा गया था। इसमें तिप्पिसेट्टि सातय्य की पत्नी भोगवेके समाधिमरणका उल्लेख है। इनके गुरु देसिगण-पुस्तकगच्छ -कुण्डकुन्दान्वयके सकलचंद्रभट्टारक थे।] [रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई० १४३ पृ० १७२]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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