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________________ जैनशिलालेस- संग्रह [ 1x8 ३७ मादि ॥ क ॥ त्रिभुवनचन्द्र सुनोहरन मिर्वद्रिमि भक्तिचिंद्रे कालगचि जगत्प्रभुवनि येसदि लक्ष्मणविभु १०६ ३८ कोहं हस्तधारेयि शासनम ॥ वृ ॥ पुरढनूर बाटोलगी जिनगेहवे पूज्यमेंढक्करसर कां ३९ के बिदु वियर्सुबलमुचलिदायमा दियांगरटरुवत्त पोन्नरुवण नमकने मादि शासन । ४० वरंथिसि कोहु धर्मगुणम मेरेट नृपमेरु लक्ष्मण ॥ जिननाथावासमं वासयरिनिभम कष्ट ४१ कालेयदुर्भावनेयिं चांडालत्रोल सुढिमि किढिसे विच्छित्तियागिढुंढें नेहने नष्टोद्वारम शाश्वतमतिशय ४२ माय्तबिन मादि तच्छासनमाचद्रार्कतार निले निलिसिटने धन्यनो लक्ष्मभूप ॥ भरसगं संसयन्ट ४३ रसर काणिकयेन्दु दायधमंद तेरेयेन्द्ररुणदिग्गलमन्दरेत्री ममनक्कि कॉटवर चांडाल६ ॥ ४४ स्त्रस्ति समधिगतपश्च महाशब्दमहासामन्त भुजबलोपार्जित - विजयलक्ष्मीकान्त समस्तारिविजय ४५ दक्षदक्षिणदोर्दण्डं फत्तलेकुलरुमलमार्तण्ड मयूरावती पुरवराधीश्वरं ज्वालिनीलब्धवरप्रमाद क ४६ वर्ष जिनधर्म निर्मल मेरेकटियककार नामादिसमस्तप्रशस्तिसहित श्रीमन्महासामन्त ये ४७ बलाधिपति भुजबळकाटरमरु || || जगमेल्लं टेसेगे कयूमुगिगेम कोहरियनोन्दु कागिणियुम ४८ ना गगनदोलिर्पाटित्य यगेदु नित्तपने बेल्वलादित्यन बोलु ॥ इन्तेनिमिद बेल्वलादित्य मचर्ष ९९४ ने
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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