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________________ जैन शिलालेख-मग्रह [ १४७ १७ कांचनसुतवटेश्वरेण । दूतकोत्र महामाधिविप्रहिक श्री मोगादित्य इ (ति) १८ श्री भीमदेवस्य ॥ [ इस ताम्रपत्रमें चीलुक्य राजा नोमदेव ( प्रथम ) द्वारा वायड अधिष्ठानकी एक वसतिका ( जिनमन्दिर ) के लिए चैत्र शु० १५ मंत् १११२ के दिन कुछ भूमिके दानका उल्लेग है । ] [ ए० इ० ३३ १० २३५ ] १८ १४७ मोटे चेन्नूर (घावाट, मंसूर ) शक ९८८ = सन् १०६६, कन्नड [ यह लेस चालुक्य राजा त्रैलोक्यमत्रके समय शक १८८, पुण्य ०५, सोमवार, पराभव सवत्सरके दिनका है । इसमें महामण्डलेश्वर लक्ष्मरस द्वारा मूलसघ चन्द्रिकाबाटवशके शान्तिनन्दि भट्टारकको भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । यह दान बेन्नेवुरमें आयुचिमय्य नायक द्वारा निर्मित बसदिके लिए था ।] [रि० स० ए० १९३३-३४ क्र० ई० ११३ पृ० १२९ ] Re चांदकवटे ( विजापूर, मैसूर ) शक ९८९ = सन् १०६७, कन्नड [ इस लेखमें फाल्गुन च० ३ शक ९८९ प्लवग सवत्सरके दिन सूरस्त गणके माघनन्दि भट्टारककी तिसिघिका उल्लेग है । सिन्दिगे निवामी जाकिमव्वेने यह निसिधि स्थापित की थी । ] [रि० स० ६० १९३६-३७ क्र० ई १४ पृ० १८२ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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