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________________ प्राक्कथन प्रस्तुत सग्रहका प्रथम भाग डॉ० हीरालालजी जैन-द्वारा संपादित होकर सन् १९२८ में प्रकाशित हुआ था। उसमें श्रवणबेलगोल तया निकटवर्ती स्थानोके ५०० लेख सकलित हुए थे। इसका दूसरा तथा तीसरा भाग श्री विजयमूर्ति शास्त्रीद्वारा सकलित हुआ। इन दो भागोमें फ्रेन्च विद्वान् डॉ. गेरिनो-द्वारा मपादित पुस्तक 'रिपोरद एपिग्राफी जनके आधारसे ८५० लेख दिये है। डॉ० गेरिनोको पुस्तक परिससे सन् १९०८ में प्रकाशित हुई थी। अत इन दो भागोमें सन् १९०८ तक प्रकाशित हुए लेख ही आ सके है। इन ८५० लेखोमे-से १४० लेख प्रथम भागमें आ चुके है तथा १७५ लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायके है अत. इनकी सूचना-भर दी गयी है - शेष ५३५ लेखोका पूरा विवरण दिया गया है। इस तरह पहले तीन भागोमें कुल १०३५ लेखोका संग्रह हुमा है।। मन् १९५७ में इस भग्रहके तीसरे भागके प्रकाशित होनेपर श्रीमान् डॉ० उपाध्येजीने हमे प्रस्तुत चौथे भागके सपादनके लिए प्रेरित किया। तबसे कोई चार वर्ष तक अवकाशके समयका उपयोग कर यह कार्य हमने किया । इसे कुछ विस्तृत रूप देनेके लिए हमने सन् १९६१ की गर्मियोकी छुट्टियोमें दो सप्ताह तक उटकमंड स्थित प्राचीनलिपिविद् - कार्यालयमें भी अध्ययन किया। इसके फलस्वरूप सन् १९०८ के बाद प्रकाशित हुए कोई ६५४ लेखोका संग्रह प्रस्तुत भागमें प्रकाशित हो रहा है। ___ यद्यपि ये सब लेख पुरातत्व विभागके प्रकाशनोमे पहले प्रकाशित हो चुके है तथापि साधारण अभ्यासक्के लिए वे सुलभ नही हैं - उनका संपादन अंगरेजीमें हुमा है तथा उनका मूल्य भी बहुत अधिक है । अत इस संग्रहमें उनका पुन प्रकाशन उपयोगी होगा
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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