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________________ -१३०] हूलिका लेख ४३ श्रीमन्महाग्रहारं पूलियूरोडयप्रमुख मासिर्वमहाजनंगाल) ४४ दिव्यश्रीपादपद्मंगलं पगडे नेमणं महिरण्यपूर्वकमाराधिसिवा ४५ (रा)पूर्वक माढिमि कॉ(ड) तम्म मुत्तम्चे लच्छिमियरु माडिसिड चम४६ दिलिपं अपियराहारदाननिमित्तमल्लियाचार्य रामचंद्र४७ देवर कालं कचिंयवर मुन्नबालुव पदुवणपोलद शिवेयगेरियारुमत१८ वसुगयि पढ(ब)ण (मागहलु कलशवल्लिगेरिय स्या(न)टोल गारु मत्तव्यं ४९ मत्तरिंगचिन्न(लेक्कदिंढर)वणमं मूरु पगर्म तेतुबंतागि विहरु । ५० पतिमक्ते धेमा सनि पायिम्मरसनग्रसुते सकलजनस्तुते मा५१ गियध्वेराणिगे सुत दी (नम)य्यनौदार्यगुणं ।। (८) जिनवं तनगासन५२ (यि)जनताकल्पमं स्यने तम्मय्यननूनढानि कलिटेवं साक्षरा५३ प्रेसरं तनगणं गुणरत्नभूषणने-संदिद नेमंगेनवनवद्याच(रण)५४ गे भूवलयदोलु पेल ॥ (९) [इस लेखके दो भाग है। पहला भाग चालुक्य सम्राट् आहवमल्ल सोमेश्वर प्रथमके राज्यमें शक ९६६ को उत्तरायण संक्रान्तिके समयका है। इनका सामन्त कालडिय वोलगडि था। इसका पुत्र पायिम्म था जिसने हम्मिकच्चेसे विवाह किया। उसे भागिणव्वे तया लच्छिपव्वे ये दो कन्याएँ हुई। लच्छियन्त्रेका विवाह कूडि प्रदेश शामकसे हुआ था। इसने पूलि नगरमें - जहाँ एक हजार धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे - कुछ जमीन खरीदकर एक जैन मन्दिर बनवाया और उसके लिए यापनीय संघ-पुन्नागवृक्षमूल गणके वालचन्द्रभट्टारकको कुछ दान दिया। दूसरा भाग चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्ल (द्वितीय ) के राज्यमे शक १०६७ की उत्तरायणसंक्रान्तिके समयका है। इसमें नेमण नामक
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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