SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ जैन - शिलालेख संग्रह कम बायकस सिसिनिए सादिताए नि अनुवाद - भगवान् वृषभ ( उसभ ) को नमस्कार हो । वारण गण, ..के वाचक ढुककी शिष्या मादिताके नाडिक कुल तथा..... आदेश से " *** मथुरा - प्राकृत | [ विना कालनिर्देशका ] स्थ [i]निकिये कुले गनिस्य उग्गहिनिय शिषो वाचको घोषको आहतो पर्श्वस्य प्रतिमा अनुवाद -- "स्था निकिय (कीय) कुलके गणि ( गणिन् ) उग्गहिनिके शिष्य वाचक घोषकने एक अर्हत् पार्श्वकी प्रतिमा.. [ EI, II, n° XIV, n° 29] ***** *** ८४. मथुरा - प्राकृत - भग्न्न । [ विना कालनिर्देशका ] अ. वर्धमानपटिमा वजरनद्यस्य धिता वाधिशिव १. - - स्य- कुटीविनि दिनाये दाति चडिम [ शि] ये २ [ EI, II, n° XIV, n° 28] ८३ की बहू, f प्रतिमा 806 अनुवाद - "वजनद्य (वज्रनन्दिन) की पुत्री, वाधिशिव ( वृद्धिशिव ? ) की पती दिना ( दत्ता ) के दानके रूपसे एक वर्धमानकी बडिमशिके.. [El, II, n° XIV, n° 33] ... OVA .. ..
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy