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________________ { मथुराके लेख ६४ मथुरा - प्राकृत ! [हुविष्क वर्ष ८७ ] [ नं ८०७२] गृ १ दि [ २० १] अ [ स्मि ] क्षुणे उच्चेनागर स्वार्य्यकुमारनन्दिशिष्यत्व मित्रस्य" अनुवाद- -८७ (१) वें वर्ष में ग्रीष्मऋतुके १ ले महीनेके २० ( ? ) चें दिन, उच्च नागरके, कुमारनन्दीके शिष्य, मित्रके ..... [El, 1, n° XLIII, no 13] ६५ मथुरा - प्राकृत -- भग्न | [ वासुदेव ] वर्ष ८७ १. सिद्ध । महाराजत्य राजातिराजस्य शाहिर - वासुदेवस्य २. म ८० ७ हे २ दि ३० एतस्या पुर्वाया अनुवाद - सिद्धि हो । महाराज राजातिराज शाहि वासुदेवके ८७ दें वर्षकी शीतऋतुके २ रे महीनेके तीसवें दिन, [14, XXXIII, p 108, n°22] ६६ ... मथुरा - प्राकृतः भन्न [सं० ९० ] .....17 ... ... १. सब [ ९० ] टुबनिए दिनस्य वधूय २. को तोग [णा ] तो पत्र [ह] [क] ते कुलानो मझमानो शाखा [ तो ] ...सनिकय भतिन्रलाए भिनि शाखा [ यह लेख बहुत टूटा हुआ है। इसमें खास कामको चीज मझमा और प वह क कुलका उल्लेख है । वहक कुल जैन परम्पराका वाहनक या पहवाहणय कुल है । वर्ष ( सं ) ९० है ] [EL, 11, n XIV, n° 22 ] २५ • .. ....
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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