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________________ मथुराके लेख ३७ • २. पुषस्य वधुये गिह ं ं ं[ कुटिविनि ][ पुष ] दिन [ स्य ] [ मातु ] र्य अनुवाद- - ४७ वे वर्ष की ग्रीष्मऋतुके २ रे महीनेके २० वें दिन, वरण (वारण) गण, पेतिवमिक ( प्रतिवर्मिक) कुलके वाचक और ओहनदि (ओघनन्दि ) के शिष्य सेनकी प्रार्थनापर पुष (पुण्य) श्रावककी बहू, गिरकी गृहिणी, पुषदिन ( पुष्पदत्त ) की माँ की तरफसे [ यह समर्पित किया गया ] | " [El, 1, n° XLIV, n° 30 ] ४८ मथुरा - प्राकृत — भग्न | [ काल लुप्त, संभवत वर्ष ४७ ] १. सिद्धम् । महाराजस्य राजातिराजस्य २. ओहनन्दिस्य शिष्येण से न अनुवाद - सिद्धि हो । महाराज, नन्दि ) के शिष्य सेनने " १ 'सेनेन' पढ़ो | ******* - राजातिराज ..... ओहनन्दि (भोध ·· १ [El, II n XIV, n° 27] ४९ मथुरा - संस्कृत | [ हुविष्क वर्ष ४७ ] दान देवस्य दधिकर्णदेविकुलकस्य स ४०७ गृ० १ दिवसे २९ अनुवाद - ४७ वें वर्षकी ग्रीष्मऋतु के चौथे महीनेके २९ वे दिन, दधिकर्ण मन्दिर ( या चैत्यालय) के पुजारी (या माली) देविलका दाम । [1A, XXXIII, p 102 - 103, n 13 ]
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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