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________________ जैन - शिलालेख संग्रह प्रतिष्ठाचार्य्यर् श्री-नयकीर्त्ति - सिद्धान्त - चक्रवर्त्तिगळ् || भ्रान्तिनोळेनो मुन्नेगळ्द चारण-शोभित कोण्ड कुन्देयोक् । शान्त-रस-प्रवाहवेसेटिपिनविद्द मुनीन्द्र - कीर्त्तिया - | शान्तत्रनेण्डितन्तत्रर सन्ततियो नयकीर्त्ति - देव- सै- । द्धान्तिक - चक्रवर्त्ति जिन - शासनम बेळगल्के पुट्टिदं || श्री - मूलतंघट देशिय - गणद पुस्तक-गच्छद कोंडकुन्दान्वयद हनसोगेय बळिय द्रोहघरट्ट - जिनालय [म्]-प्रतिष्ठानन्तर देवर शेपेयनिन्द्रर् कोण्डु-पोगि विष्णुवर्द्धन- देवर्गे वङ्कापुरदोळ् कुडुवबसरदोळ् । कवियेरिंगेन्दु वन्दा-मसणनसम - सैन्यङ्गळ विष्णु - भूप । तवे कोन्दा प्राज्य- साम्राज्यमनतुळ-भुजं कोळवुद पुट्टिद भूभुवनक्कुत्साहमागुत्तिरे बुध-निधि लक्ष्मी-महा-देविगागळ् । रवि-तेज पुण्य-पु दशरथ नहुपाचार - सार कुमारम् ॥ भूभृत्-पति-मद-करि-हरि - शोभास्पद नचळता - समुत्तुङ्ग श्री- । प्राभवनुदिताखण्डळ-वैभवनेम् गोत्र - तिळकनादनो पुत्रम् ॥ अन्तु विजयोत्सवमु कुमार-जन्मोत्सव मुमागे सतुष्ट-चित्तनागिर्द विष्णुदेवं पार्श्व- देवर प्रतिष्ठेय गन्धोदक- पगळं कोण्डु बन्दिर्द्दिन्द्ररं कण्डु बरवेन्दिदिरेहु पोडे गन्धोदकमु शेपेयुम कोण्डेनगी- देवर प्रतिष्ठेय-फलर्दि विनोत्सव कुमार-जन्मोत्सवमुमादुवेन्दु सन्तोप - परम्परेयनेग्दि देवर्गे श्री- विजय पार्श्व - देवरे व पेसरुम कुमारंगे श्री विजय - नारसिंह देव नेम्व पेसरुमनि कुमारगभ्युदय निमित्तमु सकळ - शान्त्यर्थमुमागि विजयपार्श्वदेवरचतुर्विधति तीर्थङ्कर त्रि काल - पूजार्चनाभिषेकक्कमी बसदिय खण्डस्फुटित जीर्णोद्धारणकं जितेन्द्रियरप्प तपोधनराहार- दानकं आसन्दि
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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