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________________ जैन शिलालेख संग्रह श्रुतकीर्तिकी प्रशंसा । पश्चात् क्रमसे सधर्मा कनकनन्डि, मुनिचन्द्र व्रतीकी प्रशसा | सुनिचन्द्रके शिष्य कनकचन्द्र-मुनीन्द्र, उनके सधर्मा माघवचन्द्र-देव; उनके सधर्मां त्रैविद्य बालचन्द्र-मुनीन्द्र और उनके सधर्मा माधवचन्द्र देव | सत्य गंगने कुरुळिमें बालचन्द्र व्रतिपतिको दान दिया। उनके धर्मा वडाचार्य प्रतिपत्ति थे । उनके सधर्मा माधवचन्द्र थे । ४७० इसके बाद भुजबळ हे मडि-व-देवकी प्रशंसा । उनकी पट्टमहिषी महादेवी तथा इन दोनोंके चार लडके मारसिंग, सत्य-गंग, कलि-रक्सगंग और भुजबल गगका उल्लेख । भुजबल - गगदेव और गग- महादेवीसे सत्य-नानकी उत्पत्ति | उसकी प्रशसा | उसकी रानी कञ्चल - देवी । ( उनके पुत्र गंग- कुमार की प्रशसा ) | जिस समय एरेयस होयसल देवका दामाद हेम्र्म्माडिदेव हरिगे के निवासस्थानमे था और एडेडोरे - ( मण्डलि ) हजारका शासन कर रहा था, कुन्तलापुरसे उसने एक चैत्यालय बनवाया और उसके लिये तमाम करो इत्यादि मुक्त, एक गाँवका दान दिया । इसके अतिरिक्त, जब सत्य-गङ्ग-देव, अपने एडेहल्लिके निवासस्थानमे सुख और शान्तिसे राज्य कर रहा था, उसने फुरली तीर्थमे गङ्ग जिनालय वनवाया, और शक वर्ष १०५४ में अपने गुरु माधवचन्द्र देवके पैरोका प्रक्षालनपूर्वक, ....... का दान किया । और गंग हेम्र्म्माडि- देवकी उपस्थितिमे सर्वाधिकारी, वामिके हेगडे, हेगडे चन्दिमय्यने कुरुलीकी अपनी 'गौडिके' भूमि कलियर - मलि-सेहिको बेची और उसने वह भूमि बालचन्द्र देवको दान कर दी । और सिरियमसेहि तथा उसके पुत्रोंने हलवुरकी अपनी 'गौडिके' भूमि, नन्नियरसदेवके सामने, बालचन्द्र-देवको भेट कर दी । ( यहाँ सीमाएँ और हमेशा श्लोक जाते हैं । ] [ EC, VII, Shimoga tl, n° 64 ] १ ये अङ्क १०३४ होने चाहिये, क्योंकि शक वर्ष १०५४ - विरोधिकृत नन्दन = १०३४ ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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