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________________ ઘટ जैन - शिलालेख संग्रह अन्तु जगद्विख्यातरम्प श्रीमत् गण्डविमुक्त सिद्धान्त - देवर गुड्डि हरियव्वरसियर कोडङ्गि - नाड मलेवडिय हन्तियूरलने क- रत्नखचित-रुचिर-मणि-कॅळा-कति कूट-कोटि-घटितमप्प उत्तुंगचैत्यालयमं माडिसि खण्ड-स्फुटित-जीर्णोद्धरणक्क नित्य पूजेग ऋषियरज्जियकळाहारदानक्कं सित-परिह/रक्कः श्रीमत् त्रिभुवनमल्ल होयसळ देवर कम्यळु -सर्वबाधा परिहारबागि गुत्तिय चिण्णन दीवर धम्मनन्तिर्व्वरदु हणविन मण्णुम विडिसिकोण्डु शक-वर्षद १०५२ नेय सौम्य-संवत्सर दुत्तरायण संक्रान्तियन्दु तम्म गुरुगळप्प गण्डविमुक्त-सिद्धान्तदेवर काल का धारा- पूर्व्वकं माडि कोहरु || ( हमेशा के अन्तिम श्लोक ) श्रीमन् - मल्लिनाथं विरुद लेखक-मदन- महेश्वरं वरेदम् । नागरादिनागरिक- द्रविळ - समुद्धरणनप्प माणिमोजन मग विरुदरूवारि-वेश्याभुजङ्ग बलकोजं कण्डरिसिदं मङ्गलम् ॥ [ जिनशासनकी प्रशंसा । ( अपने पदों सहित ) विष्णुवर्द्धन - होयसळ - देव अपने निवासस्थान दोरसमुद्रमे विराजमान थे । राजा विष्णुने चक्रगोटके स्वामी सोमेश्वर को अपनी तलवारकी धारसे दराया । वह गौड, मालव, चोळ, त्रिपुट, त्रि-कलिंग सबके लिये भयावह था । जब विष्णुवर्द्धनका ज्येष्ठ पुत्र श्रीमत् त्रिभुवनमल कुमार बल्लालदेव राज्य कर रहा था:( उसकी शूरवीरता और औदार्यकी प्रशंसा करते हुए उसकी स्तुति ) । कुमार वल्लाल देवकी वहिनोंमें सबसे बडी हरियव्बरसि थी । उसका वर्णन . - ( जैन रूपसे उसकी भक्तिका प्रदर्शन, उसकी प्रशसा ) । उसका पति सिंग था, ( उसकी प्रशंसा ) | उस हरियब्ब देवीके गुरु श्री-मूलसंघ, कुन्दकुन्दान्वय, देसिंग-गण तथा पुस्तक- गच्छके माधनन्दि- सिद्धान्तदेवके शिष्य गण्डविमुक्त-सिद्धान्तदेव थे; ( उनकी प्रशंसा ) जगद्विख्यात गण्डविमुक्त-सिद्धान्त देवकी गृहस्थ-शिष्या हरियव्वर सिने कोढगि नाइके मलेवडिके इन्तियूरमे, गोपुरों या शिखरोंसे - जिनमें रत्रोंसे
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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