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________________ जैन - शिलालेख संग्रह परिचय [ इस लेख में रायणय्य नायक, मारय्य नायक, तथा कोण्डनूरुके दूसरे नायकों द्वारा किये गये दानका उल्लेख है । ये दान महातीर्थ तटेश्वरदेवके मन्दिरकी तरफ से किये गये थे। उस समय कुण्डी ३००० में महासामन्त राजा कार्त्तवीर्य राज्य कर रहे थे । इनकी उपाधियोमे रहन्वश बतलाया गया है। पूर्ववर्ती रह शिलालेखोंकी अपेक्षा इनकी उपाधियाँ कलहोळी शिलालेखकी उपाधियों से ज्यादा मिलती हैं । इस लेखकी ४३ वीं पंक्ति में उनका नाम 'कत्तमदेव' दिया हुआ है, और ये संभवत. कार्त्तवीर्य तृतीय है, जैसा कि आगेकी वंशावलीसे प्रकट होगा । कालकी पंक्ति घिस गई है । ] ४०८ [JB, X p 181-182, p. p 287-292, t, p 293-298, tr, insn° 8, II part. ] २७७ कल्लूरगुड्डु —— संस्कृत तथा कन्नड [ शक १०४३ = ११२१ ई० ] [ कल्लुरगुड ( शिमोगा परगना ) मे, सिद्धेश्वर मन्दिरकी पूर्वदिशामे पढ़े हुए पाषाणपर ] १ इस शिलालेखका लेख वही है जो शिलालेख नं २२७ का अन्तिम भाग है । केवल अश- मेद है । २२७ नं का अश पहिला है और इस लेखका अश दूसरा है । पर यह अश-भेद सूक्ष्मरीतिसे अवलोकन करने पर भी, सिवाय तिथि (काल)- मेदके, ठीक-ठीक नहीं मालूम पडता । अत लेख ( जो २२७ वे शिलालेखका द्वितीयाश है) यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पाठक अपनी बुद्धिसे ही उसे निश्चित करें, क्योंकि हमको उक्त ( २२७ ) लेखमे 'रायणय्य नायक' तथा 'मारय्य नायक' ये दो नाम ( जिनके दानका उल्लेख इस लेख मे है ) कतई नहीं मिले हैं । 'कोण्डनूरु' का नाम अवश्य पाया जाता है, पर उसके अन्य 'नायक' का कुछ भी पता नहीं । अत हमें सन्देह है कि २२७ वे नं० के शिलालेखसे भिन्न कोई दूसरा लेख इस २७६ वे नं० का होना चाहिये । सभव है वह गल्तीसे लिखे जानेसे रह गया हो, या मूल 'JBX' पत्रिकामे ही छूट गया हो । सम्पादक
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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