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________________ ४०४ जैन-शिलालेख संग्रह [बायें हायकी ओरके शिलालेखमें करीब १७-१७ अक्षरोंवाली ३७ पक्तियाँ हैं। इसमें एक दानका उल्लेख है जो मादिगवुण्ड और दूसरे गाँव-प्रमुखोंके द्वारा शुमकृत् संवत्सरमें, चालुक्य विक्रमके ४५ ३ वर्ष, किरिय बकापुरके जिनमन्दिरको किया गया था।] [LA, IV, 205, 2° 7, a.] मत्तावार-कन्नड [विना कालनिर्देशका पर संभवतः लगभग ११२० ई०] मचावारमें, पार्श्वनाय-यस्तिके प्राङ्गणमें एक पापाणपर] मरुळहळि-जकवे हटिदेडे गे "गन्ति मत्तवृरद वसदि तपसु माडि सिद्धियादळु अव्त्रेय माजकन मग मारे य] कल्ल निल्लिसिद [मरळहलळिके नकव्वेके द्वारा प्रेपित गे..... गन्तिने मत्त्वूरकी बस. दिमें तपश्चरण करके सिद्धि प्राप्त की । अत्रेय माजकके पुन मारेयने यह पाषाण स्थापित किया। [EC, VI, Chikmagalūr tl. n° 52] ૨૭૪ सुकदरे-संस्कृठ तथा कन्नड़ भन्न { काल लुस, पर लगभग ११००ई०] [सुक्दरे (होणकेरी परगता), लक्काम मन्दिरके सामने पड़े हुए पापाणपर] .... ..................... ................................ ........."कल्पवृक्ष-सदृश कीर्त्यङ्गनावल्लभम् श्री..........................."पुण्याकरम् ॥ श्रीमत्परमगंभीरत्याहादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनायस्य गासनं जिनशासनम् ॥ . . . . . . . . . . .
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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