SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निदिगिका लेख आशीदाशान्तराळ-प्रथित-पृथु यत्रो व्योम - गंगा-तरंगः | चञ्चञ्चारित्र-धात्री- भवदति-ललितोदार- गम्भीर-मूर्त्तिः । वाक्-कान्तोत्तुंग-पीन-स्तन-कश-लसन्नूत-चूत-प्रवालः ॥ सिद्धान्त क्षीर- नीकर - हिमकिरणश्श्री प्रभाचन्द्रदेवः ॥ अभिनव - गणधर रूपं । त्रिभुवन-जन- विनुत- चरण - सरसिरुह-भृङ्ग । शुभ-मति-त्रैविद्यास्पद-। नुभय-कवीन्द्रोत्तम प्रभाचन्द्र- बुधम् ॥ अवर सधर्म्मरु | शशि-विशद-कीर्त्ति निर्म्मट नसदृश-गुण-रत्न वार्षि ऋाणूर्गणसद्बिसरुह-बनार्कनेम्बुदु । वसुमतियोळनन्तवीर्य्यसिद्धान्तिगरम् ॥ तत् धर्म्मरु | ३९५ 1 मन-वचन-काय-गुप्तिय । ननुनयदिं तळेदु पञ्च समितिय वादिन् । दनुवशनाद तपोनिधि | मुनिचन्द्र - प्रतिपनखिळ- राद्वान्तेशम् ॥ इन्तेनिसि नेगर्त्तेय तळेद श्रीमत् प्रभाचन्द्र - सिद्धान्त - देवर गुड्डुं भुजगंग-पेड - देव । वळवद् वैरिगळ पडल्पडिसि गेल्दुप्राजियोक माण्दने । चलढिन्द परियह वैरि-पुरमं तत्-कोटेयं तद्-मही । तळ कोण्डु वरित्रि वण्णिसुविन श्री वर्म्म- देवं मही । तळम तोळ्- बलदिं निमिर्चिदनिदेम् पेम्र्म्माड शौर्य्यात्मनो ॥ भरदिन्दान्तदटङ्गं । शरणेन्द नृपङ्गवेरदु बन्द नरङ्गम् | " I सुरगिरि वज्रागार सुर-भूज वर्म्म- देवनदटरदेवम् ॥ इन्तेनिसिद वर्म्म- देवन पट्ट -महादेवियेन्तेन्दडे | जिनेन्द्र- पादाम्बुज-मत्त भृङ्गी गुणावली - भूपण - भूपिताङ्गी । नितम्बिनीना कळशायमाना विराजते गङ्गमहाधिदेवी ॥
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy