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________________ मत्तावारका लेख ३८३ २५४,२५५,२५६,२५७,२५८,२५९,२६०,२६१ श्रवणवल्गोला-संस्कृत तथा कन्नड (देखो जैनगिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग।) २६२ मत्तावार-कन्नड भन्न [शक १०३८८१११६ ई०] [मत्तावार पार्श्वनाथ वस्तिके प्राङ्गणमें एक पापाणपर] खस्ति श्री सक-वरुप १०३८ नेय दुर्मुकि संवत्सरद चैत्रमासद कृष्ण""" " यादिवार'.... ... 'चेटल्लियु मायन""मग मावण्णन शिप्यरु सन्यसन गेय्दु मुडिहिद निसिदि । [(उक्त मितिको), मायनका पुत्र और मावण्णका शिष्य सन्यसन (संन्यास-समाधि) धारण करके मर गया । उसका यह स्मारक है।] [ EC, VI, Chikn agalur tl, n° 51] २६३ तिप्पूर-सस्कृत तथा कन्नड [शक स० १०३९=११६७ ई.] [तिप्पूर (कुल्गेरी-प्रदेश )मे, गांवके उत्तर-पूर्व, पहाडीपर] भद्रमस्तु जिनगासनाय सम्पद्यता प्रतिविधानहेतवे । अन्यवादिमदहस्तिमस्तकस्फोटनाय घटने पटीपसे ।। श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्चनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासनम् ॥ स्वस्ति होयसल-बगाय यदु-मूलाय यद्भवः । क्षत्र-मौक्तिक-सन्तान पृथ्वी-नायक-मण्डनम् ॥ खस्ति श्रीजन्मगेह निमृत-निरुपमौर्वानळोदाम-तेज । विस्तारोपात्त-भू-मण्डलममल-यशश्चन्द्र-सम्भूति-धाम ।।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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