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________________ मथुराके लेख दिना दातिल [ की पुत्री ], मातिलकी पत्नी और जयपाल, देवदास, नागदन ( नागदत्त ) तथा नागढ़िना ( नागदत्ता ) की माँ थी । [EL 1, ° XLIV, n° 28 ] २७ ३१ मथुरा - प्राकृतभग्न्न । [हुविष्क सं० २०] अ. १. [ सिद्ध स २० गृ ३ ] ढि [१०] ७ [ ए ]स्य पूर्वाय कोट्टिय[[] तो गणातो ब्रह्मदासियानो कुलातो उच्चे [ नागरितो गा] खातो [ श्री ] गृह [i] तो सभोगातो [ वृहतव ]]चक च गणिन च ज [-मित्र ] स्त्य..... [ ओ ] घस्य शिष्यगणिस्य [ अ ] पालस्य श्र २. अ [द्धच ] रो [ वाच ]कम्य अ[ दत्त ]त्य शिष्यो वाचको असीहा [त ] स्य निव्वर्त्तणा [ ग्वो] हमि [ त ]स्य मानिकरस्य [गी ]-- जयभ[ट्टि] धीतु दात्य---- व १ [लो ] हत्राणियत्स बाधर वधू [ह] ग्गु [देव]स्य धर्म्मपन्निये मित्राये [ दान ].... [ सर्व्व ] स [ त्वान ] हि [तसु ] खाये काक [तेय ]......क्ष २. वाज.... f. 7. अनुवाद - सिद्धि हो । हुविष्कके २० महीनेके १७ वें दिन, वाचक अर्य सीह ( थे, और जो कोट्टियगण, ब्रह्मदासीय कुल, १ 'शिष्य' पढ़ो | रज" 1 वं वर्षकी ग्रीष्मऋतुके तीसरे सिंह ) - जो वाचक दत्तके शिष्य उच्च नागरी शाखा तथा श्रीगृह
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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