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________________ રૂદ जैन- शिलालेख संग्रह १ तेलकी चक्कीके साथ, (टक्क ) भूमिका दान किया । हमेशा के अन्तिम श्लोक | यह लेख कनक्मन्त्रिविध-देव गृहस्थ-विष्य, सेनवो योग देवके द्वारा रचा गया । ] [LIC, TII, Shimoga tl, n° 89] २५२ महोबा - संस्कृत [ संवत् १९६९, फाल्गुन सुदि ८ (१११२ ई० ) ] यह लेख संभवत जयवमेदेव कालका होना चहिये, जो, जैसा कि इतिहास कहता है, सिर्फ साल बाद, सं० १९७३ मे शासन कर रहा था । [A Cunningham, Reports, XXI p 73, a ] २५३ याहळ्ळि - संस्कृत तथा कन्नड़-भन [ वर्ष ३७ चालुक्य विक्रम=१११२ ई० ] [ लालहळ्ळि (होळ परगना ) में, तलवार के खेत से पापाणपर ] श्रीमन्परमगमीरस्याद्वादा मोबाञ्चनम् ॥ जीयात् त्रैलोक्य नायव शासन जिनशासनम् ॥ खस्ति समस्त सुवनाश्रय श्री - पृथ्वी चलम महाराजाधिराज परमेश्वरं परन-भट्टारकं सलाश्रय-कुळ तिळकं चालुत्याभरणं श्रीमत्-त्रिभुवनमलदेवर विजय राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रबर्द्धमानना-चन्द्रार्क-तारम्बर सलुत्तमिरे कल्याणपुरः- नेल्बीडिनो सुख-सकया- विनोददि राज्य व्युत्तिरे तत्पादपद्मोपजीवि । * महोबारे ये (न० २५२, ३२५, ३३७, ३८१, ३६०, ३६१, ३६५ ) अतिसक्षिप्त शिलालेख ए जैन मूर्तियां चर-पाषाणपर मिले थे । इनमंत्र कुछ शिलालेख बहुत काम है, क्योंकि उनमें जिस समय मूर्तिका निर्माण या प्रतिष्ठा हुई थी उस काल तथा उस समय त्रासन करनेवाले राजाका नाम, ये दोनों चीजें दी हुई है। कुछने शासन- राजा का नाम नहीं मिलता, पर काला उलेख मिलता है, कुछ वह भी नहीं मिलता ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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