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________________ ३६४ जैन- शिलालेख संग्रह नाम कुलचन्द्र था । ये ( कुलचन्द्र ) यहाँकी किसी गुफामे रहते थे और अपने गुरुकी तरह, अवश्य जैन रहे होंगे ] [T Bloch, A SI, Annual Report 1902-1903, p 40] २४६ नेसर्गी (जिला बेलगॉव ), कन्नड़ [ विना काल-निर्देशका, पर ई० ११ वीं या १२ वीं शताव्द्रिका ( फ्लीट ) ] बेलगाँव जिलेके सम्पगाँव तालुका नेसर्गीके एक छोटेसे तथा मईध्वस्त जैनमन्दिरकी एक खड्गासनस्थ बुद्ध प्रतिमा के चरणपाषाणपर निम्नलिखित अभिलेख पुरानी कन्नडके ई० ११ वीं या १२ वीं शताव्दिके अक्षरोंमे है. श्रीमूलसयद बलात्कारगणद श्री पार्श्वनाथदेवर श्रीकुमुदचन्द्रभट्टारकदेवर गुड्ड वाडिगसात्ति - सेवियर मुख्यवागि नख ( ग ? ) रङ्गळु माडिसिद नख ( ग 2 ) रजिनालय || [ श्रीमूलसंघ बलात्कारगणके, श्रीपार्श्वनाथदेवके श्री कुमुदचन्द्र भट्टारकदेवके शिष्य या अनुयायी वाडिगसात्ति सेट्टि जिनमे मुख्य था ऐसे नगरके ( व्यापारी लोगो ) द्वारा 'नगरका जिनालय' वनवाया गया । ] [IA, X, p 189, n° 16, t & tr ] २४७ ऐहोले- -कन्नड भन [विक्रमादित्य चालुक्यका २६ वाँ वर्ष, शक १०२३= ११०१ ई० ( फ्लीट ) ] [ ऐहोले गाँव के दक्षिण-पश्चिम दरवाजेके बाहर ही हनुमन्तकी आधुनिक कालकी वेदी है । इसके सामने 'ध्वजस्तम्भ' नामका एक पाषाण है। इस ध्वजस्तम्भके पादुकातलमे एक वीरगल या स्मारक पत्थर बनाया गया है जिसपर पुरानी कर्णाटकभाषामे एक शिलालेख है । इस लेखकी नकल भाग : Elliot MS. Collection पृ० ४१० पर दी हुई है ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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