SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ जैन-शिलालेख संग्रह २२४ मदलापुर-कन्नड-भन्न [काल लुप्त,-पर सभवतः लगभग १०८० ई.] [मदलापुर (मल्लिपद्दण परगना)में, गोणि वृक्षके नीचे एक पाषाणपर] (सामने ) खस्ति श्रीमतुः 'वर्य-नल्लरस... "अरकेरेय बसदि माडितु इदके "वदु-गद्दे ' . मण्णु अय्-गण्डुग पिरिय""दोळय्गण्डुग-मण्णु विसवूर-मण्णु अय्-गण्डुग कोटेय मण्णु मु-गण्डुग इनितु बसदिगे सल्व-भूमि अदा-पदके अदटरादित्य अधिरत-पाण्ड्यय वेळ्तु ............."अरसर-कालदोळ् श्रीम' मन्ने-ग"सिबय्य.. गुड्डय... . ..."मण्डळ कलाचन्द्र-सिद्धान्त-देव-भट्टारर शिष्यर""" अमळचन्द्र-भट्टारकर” • “बसदिय माडि ... " सल्सिदु" (हमेशाका अन्तिम श्लोक)। सेनवोव दे ........." [ ...."नल्लरसने अरकेरेकी बसदि बनाई। ( उक्त) भूमिका दान उसके लिये किया । जो कोई इसे नष्ट करेगा, वह अदटरादित्यके क्रोधका पात्र होगा। • ...अरसके समयमें, .. • रमण्डल कलाचन्द्र-सिद्धान्तदेव-भट्टारके शिष्य अमलचन्द्र-भट्टारकने इस बसदिको बनवाया । हमेशाका अन्तिम लोक । सेनवोव दे.....] [EC, V, Arkalgud tl n° 2021 २२५ खजुराहो-संस्कृत [सं० ११४२=१०८५ ई०] [इस प्रतिमा-लेखके लेखका पता नहीं है, क्योकि यह लेख एक खण्डित प्रतिमापरसे ए. कनिंघमने लिया है, जो कि प्रतिष्ठाकाल और प्रतिमाके नामके सिवा और कुछ नहीं बताता । इस प्रतिमाकी प्रतिष्ठा या स्थापना
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy