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________________ ३०२ जैन-शिलालेख-संग्रह सम्यक्त्व-चूडामणियु जगदेक-दानियें एनिसि सान्तळिगे-सायिरमुमनेकछत्र छायेयिन्दमानन्दु ननि-सान्तरनेम्बेरडनेय पेसरं पडेदम् ॥ (दक्षिणमुख ) ख्यातियनेनं पेवुदो। बूतुग-पेमडि पडेद महिमोन्नतियम् । भूनळदोळ शान्तरनुपमातीत चक्रि कुडल पडेदनमोच ।। अर्द्ध-पथमिदिर्गे बन्दु त-1 दासनमेनिए लोह-विष्ठरदोळ् सं- । चर्द्धिन-सान्तरनेनिप ध-। तुर्द्धरन चक्रवर्ति निलिसिदनेसेयल् ॥ अन्तातन तम्मनोडगनशेष-धरा-नळयम कर-त्रळयम तान्दुवन्त लीलेयिं ताब्दि विक्रम-सान्तरनेम्ब पेसर पडेद ॥ खस्ति श्री-लसदुप्र-श-तिलकः श्री-वीर-देवात्मजः दृप्यद्-वैरि-निकाय-दर्य-दळन-प्रादुर्भवद्-विक्रमः । सम्पूर्णेन्दु-करावदात-सु-यशो-व्यालिप्त-दिक्-भित्तिकः श्रीमान् विक्रम-शान्तरो विजयते लक्ष्मी-वधू-वल्लभः ॥ आतननुज ।। पर-नरप-शिरः कुञ्जो। स्कर-करि-कमळा-पयोधर-द्वय-हारम् । स्मर-मूर्ति निखिळ-दिग-मुख-। परिचुम्बित-कीर्ति चर्म-देव कुमार ॥ अन्तेनिसिदवर तायि ॥ जनकं रकस-गङ्गा-भूमिपति काश्ची-नाथनात्म-प्रियम् ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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