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________________ २८४ जैन शिलालेख संग्रह वृ || वर-लक्ष्मी-लक्ष्मण सान्तर-कुल- तिळक सूर्य तेजःप्रभावं । पर-नारी- दूरमावर्जित - गुण-निळ्यं वैरि - कालानल मन्- | दर-धैर्य नीति- पारायणनमळ - लसत् कीर्ति मूर्ती वितानम् । धरेय कायल् समर्थं सुरपति-विभव पुदि वीर-देवम् ॥ क || धुरढोळसि·ढतेयनुच्चिढोड् । अरि-नृप -युवतियर मुगुळ कङ्कणढा-की- 1 तरतरदिनुच्चिदवु निज- | कर-खङ्गमबर्के कीले शान्तर - नृपति || वीरुगन दोरेंगे दोरे पेरर् । आरु वन्दपरे कृत-युग त्रेता-द्या- | पार- कलि-युगदोळगण वी- । ररुदारर् प्रतापिगळ् धर्म्म-परर् ॥ आतननुजर् जगद्वि- 1 ख्यातर् श्री-सिङ्गि-देवतु रिपु-चळ - निर्- | ग्वातनेने वर्म्म- देवनुम् । आतत-कीर्त्ति-वितानरवनी-तळढोक् ॥ व || अन्तेनिसिद बीर-देवने काडव - मादेवियेनिसिद चट्टल-देविि किरिय वीरल-मादेविय विवाहोत्सवदिं कूडेया - वीर-मादेवियु नोळम्व नारसिंग- देवन सुते विज्जल - देवियुमाळ्वर मंगळचलदेवियु कुलवधुगळवरोळगे वीर - महादेवियन्वय-क्रममदेन्तेने || स्वस्ति समस्त सुवनाधीश्वरेक्ष्वाकु कुल - गगन गभस्तिमालिनी पराक्रमाक्रान्त-कन्याकुब्जावीश्वर-शिरो-विलग्न-निशित-शिळीमुख पार्थिव पार्थस् समर केली-धनञ्जयो धनञ्जयः तद्-वल्लभा गान्धारी देवी तत्सुनो हरिश्चन्द्रस्तदग्र-महिषी
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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