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________________ २८२ जैन-शिलालेख-संग्रह मृगराज-लाञ्चन-विराजितान्योत्पन्न बह-का-सम्पन्न मान्तर कलकुमुदिनीगशाक-मयूखाकर रिपु-मण्टलिक-पतङ्ग-दीपार तोण्ड-मण्डलिक-कुळाचन-बन-दण्ड विरुद-मेरुण्ट कन्दुकाचार्य मन्दर-चर्य कीर्तिनारायण सौर्य-पारायण जिन-पाटाराधक पर-बल-सावक सान्तरादिन्यं सकळजन-स्तुत्य नीति-शास्त्रज्ञ विरुठ-सा श्रीमन्महा-मण्डलेश्वर ननिसान्तरदेव ॥ वृत्त ॥ चरण-विनम्ननागि तोदळेम्बिडि मुन्ने ललाट-पट्टदल ॥ वरेट दुरक्षरावठिगळ तोळेदप्पुबु तामे निन्न मच्-। चरणरजगणेन्दोडुजितर्निनगाहारे देव मण्डले । श्वर-कळमक केसरि नरेन्द्र-शिखामणि नन्नि-सान्तरा।। प्रतिविम्ब रुपिनोळ पोल्केम गुणदोनदार पोलपनिननेम्बी-1 स्तुतियं निश्चरिस गोविन्दर वेसेयदिरेन्तेन्त्र निनन्ते नोडु-। न्नतियोल हेमाचळ भान्तियोळवनि-नळ मेरेयोळ् वार्धि शौच-1 व्रतदोळ सिन्धूद्भव सत्यटोकिन-तनेय सौर्य्यदोळ् भीमसेनम् ॥ अन्तेनिसिद नन्नि-सान्तर-देवरन्वयमटेन्तेने । उत्तर-मधुरावीश्वरनु मुग्रवगोद्भवनुमेनिसिद राहनेम्ब मण्डलेश्वर कुरुक्षेत्रदोळ् भारतदल कादि गेल्वडे नारायण मेचि एक-सखमुमं वानर-बजमुमं कोट । आतनि पलबरु राज्य गेदु पोगे । सहकारनात नर-मास-त्रतनागे आतङ्ग भिवा-देविग पुट्टिद जिनदत्तनानन चरितके पेसि दक्षिणाभिमुखनागि वरुत सिंहरथनेम्बसुरन कोन्दडे जकियब्बे मेचि सिंहलाञ्छन कोहळ् ।। अन्धकासुरनेम्वसुरन कोन्दु अन्धासुरमेन्दु माडिद । कनकपुरके वन्दल्लि कनकासुरन कोन्द । कुन्दद कोटि
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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