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________________ कुप्पहरुका लेख २६९ ज्वने मु मा....... दी-स्थलकदेडे-नाडोळ् चल्वु-वेतिई - सिद्ध । डणियं माळल-देवि ता विडिसिदळ श्री-कीर्ति-भूपाळनिम् ॥ अन्ता-वन्दणिका-तीर्त्यादि-सकळ चैत्यालयकाचार्यरु मण्डळाचाय॑स्मेनिसिद पद्मनन्दि-सिद्धान्त-देवर गुरु-कु...... 'न्वय-प्रभावमेन्तेन्दोडे ॥ दुरित-कुलान्तक चरम-तीर्थकरं विभु वीरनाथनी-1 धरे तिळिवन्तु हेयमिद"....."समस्त-तत्त्वमम् ॥ परिविडियिन्दे पेन्दु जनमं वर-मोक्ष-पथक्के तिईि वित्- 1 तरिसिद मुक्ति-कान्तेय लतागमनप्पिदनिन्द्र-बन्दि -॥ आ-नेगळ्दन्त्य-कश्यपनिनादुदु काश्यप-गोत्रमी-जनम् । ज्ञान-निधानना-जिनन सद्गण-नायकरग्रिमावधि- । ज्ञानिगळप्प गौतम-मुनि"" मु" रे श्रुतकेवळ प्रभा-1 भानुगळप्प विष्णु-मुनि मुख्यरुमा-पथम निमिचिदर् ।। यतिगळवरिन्दे पलवरुन् । अतीतवा " बठिकमवतरिसि वहु-। श्रुतनागियु वल वि- । श्रुतनाद भद्रबाहु-यतियिदुचित्रम् ॥ अवरि वळिके ।। श्रुत-पारगरनवद्यर् । चतुरङ्गुळ चारणर्द्धि-सम्पन्न स्सं-1 हृत-कु-मत-तत्त्वरेनिसिदर । अतर्य-गुण-जलधिकुण्डकुन्दाचार्य्यर ॥ आ-कोण्डकुन्दान्वयदोलु ॥ श्री कुण्डकुन्दान्वय-मूलसंघे क्राणूर-गणे गच्छ-सु-तित्रिणीके (य) अम्भोनिधाविन्दुरिवोदपादि सिद्धान्ति-चक्रेश्वर-पद्मनन्दी ।। शान्त-रसं पोनल्वरिदु सयमवल्लि मडल्तु पचि तो-।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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