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________________ वन्दलिकेका लेख २०६ मुल्लूर - संस्कृत तथा कन्नड [ काल लुप्त पर लगभग १०७० ई० ] [ मुल्लूर ( निदुत परगना ) में, पार्श्वनाम वस्तिके पश्चिममे तीसरे पापाणपर ] • यानिधि सत्या विनिर्गत....... वर्ण............द्यामुलं... पाळ-भूत वरसिद कारुणियोदय.... यम्वन्तिरे स..... . • तुळ्ळिन CGE. • ***... * लोक्यविख्याते . पनिद .... • 'ल-देवि ॥ भूतल यण मोक्षदे माळि .... नवचन काय वद्दिग त दिविजलोक ॥ खं .. .. २६३ .....पृथुविकोङ्गाळवनरसि" [ यह समस्त लेख बहुत विगडा हुआ है। किसी मरे हुएका स्मारक है । और पृथुविकोङ्गाळवकी रानी ] [ EC, IX, Coorg tl, n°36] २०७ बन्द लिके - संस्कृत तथा कन्नड़-भग्न [शक ९९६ = १०७४ ई० ] [ बन्दलिकेमे, उसी वस्तिके उत्तरकी ओरके एक दूसरे पाषाणपर ] भद्रं समन्तभद्रस्य पूज्यपादस्य सन्मतेः । अकलंक - गुरोर्भूयात् शासनाय जिनेशिनः ॥ श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाच्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासनम् || स्वस्ति श्री प्रमदा-प्रमोद-जनकं यस्योरु वक्ष स्थलम् यद्दोर्द्दण्ड-कृतान्तवक्त्र-विवरे मग्नं द्विपट्-पार्थिवैः ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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