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________________ बलगाम्बेका लेख २५५ इरे बनवसे-पन्नि -। सिरकमाधिकारियु कार्य-धुर-। न्धरनुं तद्-राज्य-समु-1 द्धरणनुमेने नेगळ्द मन्त्रि मन्त्रि-निधानं ।। वृ॥ कविता चूताङ्कर-श्री-मद-कळ-कळकण्ठोपम काव्य-सौधा-। वर्णन-वेळा-पूर्ण-चन्द्रं सम-विषम-महा-काव्य-बल्ली-तलान्तोत्सव-चञ्चच्चञ्चरीक वसुधेगेसेदनी-नुत दण्डनाथ-। प्रवरं श्री-शान्तिनाथं परम-जिन-मताम्भोजिनी-राजहसम् ।। कुनयगळ जैन-मार्गामृत दोळिरे जल-क्षीरदन्तल्लि सद्-वा- । क्य-निशातोच्च विन्द कुमत-कलप-पानीयम तून्दि जैना- । नन- नियंत्-तत्त्व-दुग्धामृतमनखिळ-भव्योत्करं मेञ्चलाखा-। दने गेय्वोल्पिन्दमाद परम-जिन-मताम्भोजिनी-राजहंस ।। परमात्म निष्ठितात्मं जिनपति परम-खामि तद्-धर्ममार्मम् । गुरु-वन्धं वदमान-ति-पति जनकं सन्द गोविन्द राजम् । पिरियण्णं कन्नपाय तनगधिपति लक्ष्म-क्षमापालनात्मा-। वरजं वाग्भूषणं रेवणनेने नेगळ्दं धात्रियोळ् शान्तिनाथम् ।। क ॥ सहज-कवि चतुर-कवि निस्- । सहाय-कवि सुकवि सुकर-कवि मिथ्यात्वापह-कवि सुभग-कवि नुत-महा-कवीन्द्रं सरस्वती-मुख-मुकुरम् ।। सुकर-रसभावदि व- । र्णकदिं तत्त्वार्थ-निचयदि सूक्तमेनल् । सुकुमार-चरितमं पे- । द कवीन्द्राग्रणि सरस्वती-मुख-मुकुर ॥ असहायनागियुं सुज- । न-सहायं मद-विहीननागियुमर्थि-। प्रसरोत्कट-दानाधिक- । नसद्रुश-विभवं सरस्वती-मुख-मुकुर ।। वृ॥ हरहासाकाश-गङ्गा-जळ-जळरुह-नीहार-नीहार-धात्री-। धर-नीहाराशु-तारावनीधर-शरदम्मोधर-क्षीर-नीरा-1
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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