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________________ वलगाम्वेका लेख २५१ वृत्त ॥ जयम धर्मक्के धर्मान्चयमनसदळ साधु-वर्गके वर्ग-1 त्रयम तन्नन्तरङ्गकोडरिसि धरैय कूडे सन्मान-दान-। यदि सन्तय्से काळं कृत-युग-मयमाप्तेम्बिन तन्न राज्यो- । दयदोळ् लोकके रागोदयमोदविदुदेम् धन्यनो सार्वभौमम् ।। आ-प्रस्तावदोळ् ॥ वृत्त ॥ नव-राज्य वीर-भोज्य पुगलिदवसर सुत्तुवे गुत्तिय मु-। तुवेनेम्बी-गदिं चोळिकनधिक बळ मुत्ति मार्-गुत्तिय प- । एणुवुद केन्देत्तेनुत्तेत्तिद तुरग-धळन् तागे सप्तागदपा- । हवदोळ वेङ्गोड्ड सोमेश्वर-नृपन वळकोडिद वीर-चोळम् ।। पेसरं केन्दळिक वेळ्कु दु पर-धरणी-मण्डल गण्डु-गेट्टाळ् । वेसनं पूणदत्तु शौर्योन्नतिगगिदसुहृन्मण्डळ मेल्पनावर- । जिसिदोन्दाज्ञा-विसेपक्केळसिद्दु सुहृन्मण्डळ सन्तमिन्ता- । देसकं कैगण्मे सोमेश्वर-नृपति मही-चक्रम पाळिसुत्तम् ॥ अन्तःकण्टकर पडल्यडिसि दुर्गाधीशरं दुष्ट-सा- । मन्त-द्रोहरतुद्धताटविकरं निर्मूळनं गेय्दु वि-। क्रान्तारातिगळ कळल्चि धरेय निष्कण्टक माडि नि- । श्चिन्तं श्री-भुवनैकमल्ल-महिप राज्य गेयुत्तिर्पिनम् || वचन ॥ तत्पादपद्मोपजीवि समधिगत-पञ्च-महा-शब्द-महा-मण्डलेश्वरनुदारमहेश्वर चलके बल्गण्ड शौर्य-मार्तण्ड पतिगेक-दाश सग्राम-गरुड मनुजमान्धात कीर्ति-विख्यात गोत्र-माणिक्य विवेक-चाणिक्य पर-नारी-सहोदर
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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