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________________ मुल्लूरका लेख लक्कद सत्र-लेक्कद मरु- । वक्क निन्द्रपुवे समर-संघट्टनदोळ् || ( हमेशा अन्तिम श्लोक ) [प्रथम भाग बहुत घिसा हुआ हे और अन्तिम पक्तियों में दानकी विशेष चर्चा है । छेनी और बल्लिको पकड़नेवालोमें प्रधान, अर्थात् पाषाणशिल्पियों में प्रधान विद्यावान पोयसळाचारिके पुत्र माणिक पोयसळाचारिने यह बसदि बनवाई | २४७ इतनी भूमि देrरके, उन्होंने ( उक्त मितिको ) भगवान्की प्रतिष्ठा की, और पूजाकर तिरु-नन्दीश्वरके कालमें दान देकर मन्दिर पोsसलके गुरु मुल्लूरके गुणसेन पण्डितदेवको सौंप दिया । परियल-देवी और मलेपरोळ् गण्डकी प्रशंसा । "रक्स- होयसळ" इन ६ अक्षरोंको अपने झण्डेपर लिखकर यदि वह उसे उड़ाता है, तो लक्षावधि शत्रु भी क्या उसका युद्धमें सामना कर सकते हैं ? ( हमेशा के अन्तिम श्लोक ) ] [EC, VI, Mūdgere tl, n° 13 ] २०२ मुल्लूर - संस्कृत तथा कन्नड़ [शक ९८६ = १०६४ ई० ] मुल्लूर ( निदुत परगना ) में, बस्ति मन्दिरमें पार्श्वनाथ बस्तिके पश्चिम में प्रथम पाषाणपर ] ( पहली ओर ) स्वस्ति शक- नृप - कालातीत - संवत्सर- शतङ्गळ् ९८६ नेय क्रोधि-संवत्सरं परिवर्त्तिसुत्तिरे तच्-चैत्र -बहुल-नवमी मङ्गळवारं पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रम्मिनोदयदल || स्वस्ति समस्त - सुरासुरेन्द्र-मकुट-तट- घटित मणि- मयूख- रेखालङ्कृत- चा ( दूसरी ओर ) रु-चरणारविन्द-युगल भगवदर्हत्-परमेश्वर-परम-भट्टारकमुख-कमल-विनिर्गतागमामृत - गम्मीराम्भोराशि- पारगरप्प श्रीमद्-गुण सेनपण्डित - देवर्म्मोक्ष-लक्ष्मी निवासके सन्दर ( तीसरी ओर )
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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