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________________ ર૩ર जैन-शिलालेख-संग्रह जैनमन्दिरको हरिकेसरीदेव और उसकी पत्नी लयलदेवी तथा बदापुरके पाँच मतोको आश्रय देनेवाली जनता, नगरमहाजनोंफी गिरड (कम्पनी) तथा 'सोलह' वर्गाने किया था।] [1A, IV, P 203, n° 1, n, ASI, XVI, p 133, a.] १८८ मुल्लूर-संस्कृत तथा कन्नड़ [विनाकाल-निर्देशका, पर लगभग १०५८६०] [ मुल्लरमें, पार्श्वनाथ बस्तिकी उत्तरी दीवालपर ] खस्ति श्री राजाधिराज कोङ्गाळ्बनव्ये पोचब्बरसियर द्रविळगणद नन्दि-सघद अरुङ्गळान्वयद गुणसेन-पण्डितदेवर गुड्डि माडिसिद वसदि मङ्गळ महा। [स्वस्ति । द्रविळ गण, नन्दिसंघ, तथा इरुशलान्वयके गुणसेन पण्डितदेवकी गृहस्थ-शिष्या, राजाधिराज-कोनान्चकी माँ पोचव्यरसिने इस बस्तिको बनवाया। महा मङ्गल।] [EC, IX, Coorg th, n' 37] मुल्लूर-संस्कृत तथा कन्नड़ [शक ९८०८१०५८ ई.] [मुल्लूरमे, पार्श्वनाथ बस्तिके पश्चिममे दूसरे पापाणपर ] धर्म-सेट्टि वरेट खस्ति शक-चर्प ९८० त्तेनेय विलम्बि-संवत्सरद उत्तरायण-संक्रान्तियन्दु श्री राजेन्द्र-कोङ्गाळ्धं तम्मय्य माडिसिद बसदिगे कोट्ट हारुवनहछि अरकनहळ्ळि निडुतद गोडल खण्डुगम् ३ के (दूसरे गावोमें ऐसे ही दान ) श्रीराजाधिराजकोगाळ्वनब्बे पोचव्यरसियर् 'तम्म गुरुगळु द्रविळ-गणद नन्दि १ वकापुरद पञ्चमत(ठ)स्थानमु नगरमहाजनमु पदिनस्वस्म्' ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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