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________________ जैन-शिलालेख संग्रह जा सकता है। खास ऐतिहासिक चीज जो यहां अक्षित करनेकी है वह अधिछत्राके प्राचीन राजाओंकी वंशावलि है । अधिछत्रा किसी समय प्रतापी उत्तर पाञ्चालके राजाओंकी राजधानी थी । वंशावली इस प्रकार है. शोनकायन तेवणी (वर्ण राजकन्या)स विवाहित वंगपाल 1 (अधिछत्राका राजा) वैहिदरी (वैहिदर-राजकन्या) गोपालीसे विवाहित राजा भागवत गोपाली आपाढसेन राजा वहसतिमित्र वहसतिमिन कहांका राजा था और उसके पिताका नाम क्या था, यह नहीं बताया गया है। लेकिन, ५० फ्यूरर की सम्मतिमे हम उसे कौशास्त्रीका राजा मान सकते है, क्योंकि वह (काँगाम्बी)प्रभास (पभोसा) के निकट है तथा बहुत-से उसके (वहसतिमित्रके) सिक्के कौशाम्बीसे मिले हैं। [EI, II, n° XIX, D° 2 (2 243)] मथुरा-प्राकृत। [विना कालनिर्देगका] १. नमो आरहतो वधमानस दण्दाये गणिका२ ये लेणशोभिकाये वितु शमणसाविकाये ३. नादाये गणिकाये वासये आरहता देविकुला ४. आयगसभा प्रपा शीलापटा पतिष्ठापित निगमा
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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