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________________ १६७ सूढीका लेख १९ कोगणिवर्म-ब (ध)ममहाराजाधिराज-पु(प)रमेश्वरः श्रीमद् अविनीत-प्रथम२० नामज (धे) य [1] तत्पुत्रो विजृम्भमाण-शक्ति-त्रय, अन्द रि-आलत्तूर-पुरुळरे-पेण२१ गराद्यनेक-समर-मुख-मख-ह(यु)त-प्रहत-शूरपुरुप-पशूप-हार विध२२ स-विहस्ति(स्ती)कृत-कृतान्ताग्निमुखः किरातार्जुनीयस्य पञ्चदशसर्ग-टीकाकार[] दुसरा ताम्रपत्र, दुसरी बाजू २३ श्रीमद्-दि] बिनीत-प्रयम-नामधेयः [11] ओ तत्पुत्रो दुर्दान्त श(वि)मई-मृदिते(त)-विश्व[ ]भरा२४ रि(धि)प-मो(मौ)लि-माल(I)-मकरन्द-पु.]ज-पि[]जरीक्ष (क्रि)___ यमाण- चरणयुगल-नलिन श्री [मुष्कर-- २५ प्रयम-नामधेयः । [1] ओ तत्पुत्रश्चतुर्दगविद्यास्थानाधिगतेरमल मतिविशेषतो नि] र२६ वशेषस्य नीति-शास्त्रस्य वक् []-प्रया (यो) क्त-कुशलो रिपु तिमिर-निकर-सरकरुणोदय-भा२७ स्कर श्री-विक्रम-प्रथम-नामधेय [1] ओ तत्पुत्रा(त्रो)ऽनेक समर सप्राप्त-विजय२८ लक्ष्मी-लक्षित-वक्षस्थल. समधिगत-सकल-शास्त्रार्थः]श्री-भूवि क्रम-प्रथम२९ प्रथम -नामधेय. [1] ओ तत्पुत्रः स्वकीय-रूपातिशय-विजी (जि) त-नल-भूपा१ इस शब्दकी अनावश्यकरुपसे पुनरावृत्ति हुई है।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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