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________________ ॥४॥ दशवकालिक सूत्रं अध्ययनं ४. २१ अजय चिटुमाणो अ, पाणभूयाई हिंसइ , वैधइ पावयं कम्मं ते से होइ कडुअं फल अयतन्तिष्ठंश्च, प्राणिभूतानि हिनस्ति । बध्नाति पापकं कर्म, तस्मात्तस्य भवति कटुकं फलम् . ॥२॥ अजयं प्रासमाणो श्र, पाणभूयाइ हिंसइ । बन्धड पावयं कम्म, तं से होइ कडुग्रं फल अयतमासीनश्च प्राणिमूतानि हिनस्ति । वध्नाति पापकं कर्म तस्मात्तस्य भवति कटुकं फलम् ॥३॥ अजयं सयमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसइ ।' बंधड पावयं कम्म, सं से होइ कडुअं फलं अयतं शयानश्च, प्राणिभूतानि हिनस्ति । वध्नाति पापकं कर्म, तस्मात्तस्य भवति कटुकं फलम् ॥४॥ अजयं भुंजमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसह ।। बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुध फलं ॥५॥ अयतं भुआनश्च, प्राणिभूतानि हिनस्ति ।' बध्नाति पापकं कर्म, तस्मात्तस्य भवति कटुकं फलम् ॥५॥ अजयं भासमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, ते से होइ कडुभं फल ॥ अयतं भाषमागाश्च प्राणिभूतानि हिनस्ति ।। वघ्नाति पापकं कर्म, तस्मात्तस्य भवति कटुकं फलम् ॥६॥ कह चरे कह चिठे, कहमासे कहं सए । कह भुंजन्तो भासंतो, पावकम्मं न बंधा कथं चरेत् कथंतिप्ठेत् , कय मासीत कथं शयीत । कथं भूनानो भाषमाणः, पापकर्म न खन्नाति ॥७॥ ॥७॥
SR No.010006
Book TitleJain Shiddhanta Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherAjaramar Jain Vidyashala
Publication Year1989
Total Pages427
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size13 MB
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