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________________ जैन साहित्य संशोधक [ भाग : कर धया पछी पण तेमणे तेवी केटलीक तपस्या- पूर्वक बुद्धनो अस्वीकार कयों छे. अने एम करओर्नु अनुसरण चालु राख्यं हतुं. मक्खलिपुत्र वामां तेमने कारण मात्र सांप्रदायिक विरोधज गोसाल जेटली मोटी विरुडता महावीरना संबंध- छे. आ सिद्धान्तनी सत्यताना प्रमाण तरीके, आ मां धरावे छ तेटली बुद्धना संबंधमां धरावतो बन्ने संप्रदायोना संस्थापकोनी कथाओमा जे महजोवामा आवतो नथी. जैनधर्ममा प्रथम मतभेद त्वनी सदृशतामो उपलब्ध थाय छे, ते रजु करीशउत्पन्न करनार जमालिनु नाम बुद्धना विरोधिोनी काय तेम छे.' नामावलीमा आवतुं नथी. बुद्धना सघळा शिष्योनां प्रो. वरती या मख्य दलील के ना उपर ते. नामहाबोरना शिप्योथी जूदा प्रकारनां छे. आ मनो आखो सिद्धान्त उभो थएलो छे, तेनुं नित भिरतान' उदाहरणांमा उपसंहार तरीके अंतिम करणारा धारया प्रमाण उपरती चर्चाधी संपूर्ण उदाहरण ए पण आपी शकाय छे के वृद्ध ज्यार रीते थई जाय छे. आ सिद्धान्तने तो संभावनानी मुसिनगरमां निर्वाण पाम्या हता, त्यारे महावीर कोटिमापणस्थानआपत्रामाटेघणामजतप्रमाणो. निश्चितरूपे युद्धनी पहेला, अने पापामां निर्वाण नीआवश्यकता रहेछे.सामान्यरीते एमजोवामांयापाश्या हता. वेछे के दरेक विरोधी संप्रदाय पोताना संस्थापकना महावीरना जीवन संबंधमां अहीं सुधी करेली उपदेशो अने सिद्धन्तोने शुद्ध अने प्रामाणिक रीते चर्चा दन्यान जे जे हकीकतो वाचको समक्ष मु. समजाववानोदावो करतो होय छे परंतु ज्यारे कोई कवानां आवी छे, तेना आधारे, जैनधर्मनी उत्पत्ति संप्रदाय पोताना मुख्यधर्मना मूळ संस्थापकना बौद्धधर्मन आश्रित छ, अथवा नहीं, ते प्रश्ननुं सहे- सिवाय अन्यपुत्पने प्रमाणरूप मानतो थाय छे, लाईयी निराकरण करी शकाशे. जो के घणा खरा त्यारे ते या तो कोई एक अन्य विद्यमान संप्रदायनो विद्वानो एटली बाबतनो तो अस्वीकार नथी करता स्वीकार करे यथवा तोते एकनवोजसंप्रदाय प्रवके युद्ध अने महावीर ए बन्ने भिन्न भिन्न व्यक्तिओ तीवे छे. आविचारानुसार चालु चर्चामांआवेमांनो नहती; परंतु, तेमो, ते उपरथी उपरोक्त प्रश्ननुं वधु जो प्रथम पक्ष स्वीकारीए तो आपणे एमज मानवू निराकरण धई जतुं होय तेम स्वीकारवा तैयार पडशे के जैनधर्म कोई पण रूपमा यौद्धधर्मनी पूर्व नधी. प्रो. वेबरे 'जैनोना आगनो' उपरना पोता- अवश्य हयाती धरावतोज हतो. अने जो बीजो ना विद्वत्ता भरेला निबंधर्मा लखे छ के-'जैनो पक्ष स्वीकारीशं तो आपणे आम कल्पना करवी नात्र बौद्धधर्मना एक सौथी जूना संप्रदायरूपे हे.' पडशे के, युद्धना विचारोथी विमनस्क थएला, आ अने वळी जणाये छ के 'मारा मत प्रमाणे शाक्य- जैन यनेला वौद्धोए पोताना मूळ शास्त्रोमांथी बुमुनि बुद्धी मिन्न एवा एक महापुरुष-के जेनो दुना एकाद विरोधीने. शोधी काढी तेमां पोताना बौद्ध ग्रंथोमा युद्धना एक समकालीन विरोधी त- पाखंडी सिद्धान्तोनुं आरोपण कयु हतुं. परंतु रोके उल्लेख करवामां आव्यो छे-ते द्वारा जैनध- आ पद्धतिनुं वीजा कोई बौद्ध संप्रदाये अनुमनी स्थापना थई हती, एवा अर्थवाळी परंपरागत करण कयु होय तेम अद्यापि जणायुं मान्यताथी पण मारा सिद्धान्तेने वाध आवतो. नथी. चर्चानी खातर क्षणभर आपणे मानी नथी. परंतु आ बाबत, मने तो आथी उलटुं. एम लईए के, जे जातनो आरोप ए लोको उपर सूचवती होय तेम जणाय छे के जैनोए इरादा मकवामां आवे छे, वास्तविकमां तेमणे तेमज कयु ने प्राप्ति माटे अत्यावश्यक मनात इतो. अने सत्यारे पर हतु, ता मानन्त्रु पडश के तमन आ कार्य घणाज जे कोई साधु, सांसारिक जीवनको त्याग करी कोई एक दक्षतापूर्वक कर्यु हशे तेम करवामां तेमने पोताना स्वर्ग या नोक्षनी अमिलाया घरावतो होय छे, तेने माटे पण प्राचीन धर्मग्रंथोमां केटलेक ठेकाणे मळी आवता ना चार वरना तपयरपर्नु विधान करेलुं है, 'निगण्ठो' अने 'नातपुत्त संबंधी केटलांक उल्ले१. Indische Saudien, ITI, 210. खोनो उपयोग करी, तेमां फेरफारो करवा
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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