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________________ ७३ अंक..) डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना फरनारो होय तथा मातामह साथे लडाई लडनारो युद्ध कर्यु हतुं आ राजा महावीरनो मामो होवाथी होय तेवो माणस अध्यात्मशानने माटे वटु उत्सुक अने तेथी जैनोनो संरक्षक होवाथी, एना उपर पने ते असंभवत लागे छे. धर्मपरिवर्तन करवामां करेली चढाईना परिणामे जैनोनी सहानुभूतीने ते तेनो वास्तविक शो उद्देश हशे ते आपणे सहे. खोई वेठो हतो. आथी पछी तेणे जैनोना प्रतिस्पर्धी लाईथी अनुमान करी शकाए छीए. तेनो उद्देश्य बौद्धोना पक्षमांभळवानो निश्चय.कर्यो हतो; के जे बीजो कोई नहीं पण जेम तेना पिताए पोताना बौद्धोने पोताना पिताना मित्रो होवाना सबवे प्रथम राज्यमां (मगधमां) अंगदेशनो उमेरो कर्यो हतो तेणे त्रास पण आप्यो हतो. तेम तेने पोताना तायाना मुलकोमा विदेहन उमे- आपणे जाणीए छीए के अजातशत्रु एक तो वैशारवानो हतो. आ कारणथी तेणे प्रथम विवेहनी लीने जीतवामां सफळ थयो हतो तथा पोजु तेणे जि जातिने तावे करवानाटे-काढी मुकवा माटे नन्दो अने मौर्योना साम्राज्यनो पायो नांख्यो इतो. नहीं-पाटलिग्राममा एक किल्लो बंधाव्यो हतो अने आवी रीते मगधसाम्राज्यनी सरहद वधवाथी जैन भाखरे पोताना मातामह वैशालीना राजा साथे अने बौद्ध ए वन्ने धर्मो माटे एक नवं क्षेत्र खुल्लु --------- --- --- थयु हतुं अने तेथी तरतज तेोते क्षेत्र उपर प्रसरी छ: जुभो, Kern, Der Buddhisrus und sein गया हता. ज्यारे बीजा केटलाक संप्रदायो मात्र Geschichte in Indien, I, p. 219 [p. 195 of स्थानिक अने अचिरस्थायी महत्त्वज प्राप्त करी the original],अने तेज प्रमाणे जैनोए पण निरयावलीमा अटकी गया हता; त्यारे ए बन्ने धर्मों आटली मोटी एं हकीक्त आपली छे. सफलता मेळववा समर्थ . थई शक्या हता तेनुं १ जुओ उपर. मुख्य कारण बीजं कोई नहीं पण आ मंगलकर २ महापरिनिव्वान सुप्त १. २६. अने महावग्ग ६, २५, राजनैतिक संयोगज हतो. - नीचे कोएकमां महावीर-अथवा तो अत्यारे आपणे तेमने जैनोना तीर्थकर तरीके नहीं संबोधता होवाथी, कहेयूँ जोईए के वर्धमान या शातपुत्र-ना सगाओनो पारस्परिक संबन्ध चताववामां आवे छे. सुपार्थ सिद्धार्थ त्रिशला उर्फे विदेहदत्ता चेटक सुभद्रा वैशालीनो राजा नदिवर्धन वर्धमान सुदर्शना बिम्बिसार चेल्लना स्त्री यशोदा कणिक उर्फे अजातशत्रु पुत्री मनोज्जा जमालि साथे परणी . उदायिन पाटलिपुत्रनो क्सापनार, पुत्री शेषवती अहीं मारो इरादो महावीरनुसंपूर्ण जीवन-चरित्र १ पाल तथा प्रारुतमा नातपुत्त. बौद्धो सेमने निगआपवानो नथी परंतु मात्र केटलीक एवी विगतो ण्ठनातपुत्त अर्थात् निम्रन्यज्ञातृपुत्र कहे छे.
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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