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________________ __ . ५८ जैन साहित्य संशोधक ...................... ..........! भाग १ कुमारपाल प्रतियोधनी प्रशस्ति तथा बीजा ग्रंथोक्त उल्लेखो उपरथी सोमप्रभाचार्यनी गुरुपरंपरादिनो वंशवृक्ष नीचे प्रमाणे थाय छे:-- ___ सर्वदेवसूरि यशोभद्र . नेमिचंद्र मुनिचंद्र मानदेव मुनिचंद्र ___अजितदेव मानदेव वादीदेवपूरि', आनंदसूरि आनंदसूरि विजयसिंह रत्नप्रभ' भद्रेश्वर गुणचंद्र पूर्णदेव महेश्वर जयप्रभ हेमचंद्र सोमप्रम मणिरत्न रामचंद्र जयप्रभ . जगचंद्र जगच्चंद्र जयमंगल रामभद्र. सोमचंद्र १ उपदेशपद, अनेकान्तजयपताका, ललितविस्तरा, योगविंदु आदि हरिभद्राचार्यरचित ग्रंथो उपर टीका-टिप्पणादिना प्रसिद्ध लेखक २ स्याद्वादरत्नाकर नामक महान् जैनतर्कयन्यना प्रणेता. ३. धर्मसागरगणिए पोतानी पट्टावलीमां आ विजयसिंहने, वालचंद्ररचित विवेकमञ्जरीवृत्तिना संशोधक ('श्रीविजयसिंहसूरिः--विवेकमञ्जरीशुद्धिरुत् ।' ) लख्या छे परंतु ते भूल छे. ते वृत्तिना संशोधक मा विजयसिंह नी, परंतु नागेंद्र गच्छना विजयसेनसूरि छे. जुओ पीटर्सननो ३ जो रीपोर्ट पृ. १०३. आ विजयसिंहनो एक शिलालेख आरासणना जैनमंदिरमाथी मळी आव्यो छे, जे संवत् १२०६ नी सालनो.छे. जुओ मारु प्राचीन जैनलेखसंग्रह नामर्नु पुस्तक, लेख नंबर २८९, ४. रत्नप्रमे रत्नाकरावतारिका नामे सुज्ञात तर्कप्रन्थ बनान्यो छे. उपदेशमालावृत्ति आदि बीजा पण एमना फेटलाक प्रसिद्ध ग्रंथो उपलब्ध छे. ५. भद्रेश्वरे वादी देवसूरिने स्याद्वादरत्नाकर ग्रंथ रचवामां मुख्य सहायता करी हती. तथा पोताना गुरुना अवसान पछी तेमनी गादीना मुख्य आचार्य ए पातेज नीमाया हता. गुणचंद्रे हेमविभ्रमनामे व्याकरणविषयक एक बघु ग्रंथ धनाव्यो छे.. ७. जालोरना एक शिलालेखमा आ बन्ने गरु-शिष्यनो उल्लेख करेलो छ. .. ८.सुधाटेकरी (मारवाड ) उपर आवेली चाचिगदेवनी प्रशस्तिना को.. ९ वृत्तरत्नाकरनी वृत्तिकरनार. . . .. प्रबुद्धरोहिणेय नाटकना रचन
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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