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________________ अंक २] तीर्थयात्राके लिये निकलनेवाले संघोंका वर्णन १०१ पालन करते रहते हैं। इस प्रकारके छोटे बड़े दो महामंत्री वस्तुपालने १२ वार संघ निकाल कर चार संघोंके देखनेका तथा उनके साथ जा कर शत्रुजयकी यात्रायें की थीं। जिनमें सं. १२८५ में यात्रा करनका इस लेखकको भी सौभाग्य प्राप्त जो यात्रा की उसके साथमै २४ तो हाथीदांतके हुआ है जिनमें इस वर्णनका बहुत कुछ प्रत्यक्ष बने हुए और १२० चंदन आदि लकडीके बने अनुभव भी मिला है । अस्तु । हुए मंदिर थे । ४५ सौ गाडियां, २८ लीवाहिनियां, कहते हैं, इसी तरह पहले गोपगिरि (गवालि- ७०० सुखासन, ५०. पालखियां, ७० आचार्य, २ यर) के आम नामक राजाने बप्पभाटिसूरिक' उप• हजार श्वेताम्बर यति, ११ सौ दिगम्बर भट्टारदेशसे शत्रुजयकी यात्राके लिये एक संघ निकाला कादि, १९०० श्रीकरी, ४ हजार घोडे,२ हजार ऊंट, था जिसमें १ लाख पौष्टिक, १ लाख घोडे, ७०० और सात लाख मनुष्य थे। हाथी, २ हजार ऊंट, ३ लाख प्यादे और २०हजार वस्तुपालकी इस अनुपम तीर्थयात्राका वर्णन, श्रावक-कुटुंब थे। (देखो रत्नमन्दिर गणिरचित उसके समकालीन और सुहृद ऐसे बडे बडे कविउपदेशतरंगिणी, पृ०२४८) योंने बहुत विस्तृत और भव्य रीतिसे किया हैं। विक्रमकी १४ वीं शताब्दीमे थारापद नगरम उदाहरण के लिये गुर्जरेश्वर पुरोहित सोमेश्वर आभू नामक एक श्रीमालशातीय बहत बंडा श्रावक महाकवि रचित कार्तिकौमुदी नामक काव्यक हो गया है। इसको 'पश्चिममण्डलिक' की पदवी कुछ पद्य यहां पर उद्धृत कर दिये जाते हैं:मिली थी। इसने शत्रुजयकी यात्राके लिये जो चिकीर्पिता श्रीसचिवेन तीर्थसंघ निकाला उसमें ७०० तो मंदिर और १०५० यात्राऽथ सोऽयं शरदाऽऽसमेनः । जिन मूर्तियां थी! अन्य समुदाय इस प्रकार था: महात्मनामीहितकार्यसिद्धौ ४ हजार गाडियां, ५ हजार घोडे, २२ सौ ऊंट, विधिविधते हि सदानुकूल्यम् ॥१ ९० सुखासन' ९९ श्रीकरी, ७ प्रपा, पानीसे भरी पाययवन्तः पधि योग्ययुग्याः हुई मशके उठा कर चलनेवाले ४२ बैल और३०भैसे, सोपानहः सोदकभाजनाथ । १०० भोजन बनानेके बडे बडे कडाह, १०० हल- श्रीवस्तुपालन समं जनीघाः वाई, १०० रसोय, २०० माली, १०० तंबोली, १३६ प्रयाणकाय प्रवगा बभूवुः।।४ हाट, १४ लुहार, और १६ सुतार थे । ३६ आचार्य आकारितस्तेन रुतादरेण थे । सब मिलकर १२ करोडका उसके संघम दृगदपि श्राद्धजनः समेतः। खर्च हुआ था। ययुस्तदीयानि पुनर्यशासि दिगन्नरेभ्योऽपि दिगन्नराणि ॥ ५ १ बप्पभट्टीभिका स्वर्गवास संवत् ८९५ में हुआ था। समं समप्रैरपि बन्धुवर्गआमराजके लिये देखो मेरा शत्रंजय तीर्थोद्धार प्रवन्ध, पृ. निसर्गबन्धुर्विवुधवजस्य । ४२ की टिप्पणी। शुभे मुहूर्तऽथ शुभैनिमित्त२ पुराने जमानेमें बनजारे लोग जिन बैलों पर माल लद मन्त्री स्वनाथानुमतः प्रतस्थे ॥६ कर आते जातेथे उनको पौष्ठिक कहते थे । गुजरातीमें स्यैस्तुरंगे: करभैर्महो उसे पाठ कहते हैं। मनुष्य भी इन बैलों पर स्वारी करते थे। १ उपदेशतरंगिणी, पृ. २४७. ३ यह प्राचीन प्रसिद्ध नगर पालनपुर एजन्साम आया २ देखो, सोमेश्वररत्रित कार्तिकौमुदी, सर्ग ९, ठक्कुर हुआ है। आजकल इसे थराद कहते हैं। अरिसिंह रचित सुकृतसंकीर्तनकाव्य, सर्ग ५; यारचंद्रसरि ४ देखो, उपदेशतरंगिणी, प. १४५, तथा सुवातसागर रचित वसंतविलारा महाकाव्य, सग १.-११-१२-१३ काभ्य, पृष्ठ ५६ | और उदयप्रभसरित धर्माभ्यदगमहाकाव्य, सर्ग १५, इत्यादि।
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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