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________________ ~~.. ........ . जैन साहित्य संशोधक [भाग १.. अर्थात् जे भाषामां सौथी प्रथम 'तेनी संक- रणमा साहाय्यभूत वनेली बधी हस्तलिखित प्रतिलता धई हती तेज भाषामा अत्यारे आपणने उप. ओमा जे जे भिन्न भिन्न लेखनपद्धतिओ मळी आ. लब्ध थाय छ, के पाछळधी, पेडो दरपेढीए ते ते चती हती ते बधी प्रामाणिक मानवामां आवी हती. फाळनी रूढ (प्रचलित ) भाषानुसार तेमा उच्चा- बने तेथी ते सबळी पद्धतिओने ए सूत्रनी नकलोरण-परिवर्तन थतां थतां छेक देवर्धिगणीना मांसाची राखयामां आवी हती. आ विचार जो नवीन संस्करण वखतनी चालू सायाना उच्चारण युक्तियुक्त जणातो होय तो, थापणे, साथी प्राचीन . यंतती भापाथी मिश्रित धरला आजे मळे छे? अने रूढिवाहिकृत लेखनपद्धतिने आगमरचनाना आये विकल्पोमांनो मने तो बीजोज विकल्प स्वी- आदि समयनी अथवा तो तेना निकट समयनी . करणीय लागे छ. कारण के ए आगमोनी प्राचीन उच्चारसूचक मानी शकीए. अने सौथी अर्वाचीन . भाषाने चाल भापानी रूढिमां फेरववानो वहीवट लेखनशैलीने सिद्धान्तना अंतिम संस्करणना स. ठेठ देवर्धिगणी सुधी चालु रहो हतो. अने अते मयनी अगर तेनी नजीकना समयनी उच्चारदर्श देवर्धिगणीना संस्करण जते वहीवटनो अंत आण्यो कमानी शकीप.'वळी साथी प्राचीनरूपमा उपहतो. एम मानवाने आपणने कारणो मळे छ. जैन लब्ध थती जैन प्राकृत भापाने, पाली तथा हाल, प्राकृत भापामां स्वरूपलंगत वर्णविन्यासनो जे सेतुबन्ध विंगरेनी ( पाछला समयनी ) प्राकृत अभाव दृष्टिगोचर थाय छे तेनु कारण, जे लोकमा- साथे जो आपणे सरखावी| तो आपणने स्पष्ट ज... पामां ( Vernacular Language) ते पवित्र णाशे के जैन प्राकृत ए पाछळनी प्राकृत करतां पा.. आगमो हमेशा उच्चाराई रहा हता, ते भापामां लीने वधारेमळती आवे छे.आ उपरथी आपणे निरंतर थर्नु रहेलु क्रमिक परिवर्तन ज छे. जैन. एवा निर्णय उपर आवी शकीप. छीप के कालगण- . सूत्रोनी लघळी प्रतिओमां एक शब्द एकज रीते नानी दृष्टिए पण जैनोना आगमो. त्यार पछीना। लखेलो जोवामां आवतो नथी. आ वर्णविन्यास. समयमा थएला प्राकृत ग्रंथकारोना ग्रंथो करता विषयक विभिन्नतानां मुख्य कारणोमांनुं एक कार- दक्षिणना यौद्धसूत्रो [गा रचना समय ] साथै . ण तो बेस्वरो वचे आवता असंयुक्तव्यंजननो प्रक- वधारे समीपता धराये छे. तिभाव (तदवस्थ राखवारूप ), लोप, के मृदकर परंतु, भापणे जैन आगमोनी रचनाना समयनी ण थवारूप छ भने वीडुकारण चेलंयक्त व्यंज. मर्यादा, तेमां प्रयोजाएला छंदोनी मददथी, आथा नानी पूर्वेना ए अने ओ ने तदवस्थ पटले कायम, पण वधारे निश्चितरते आंकी शकीए तेम छाए. हूं राजवारूप अथवा तेने क्रमथीइ अने उना रूपमां ------- परिवर्तित करवा ( लघूकरण) प तो . १. कोई अहीं एवी दलील कर्या को छेके आवी . शक्य ज छ के एकज शब्दना एकज समयमां एक- आप एटले रूठिब हैष्फत लेखनपद्धतिना अस्तित्वन कारण . थी वधारे शुद्ध गणावा लायक उच्चारोहोई शके. मात्र संस्रुत मापानी असर छे. परंतु जैनोनुं प्रारुत-मषानुं ... उदाहरण तरीके-भूत, भूयः उदग, उदय थने अय: ज्ञान हमेशा एटलुं वधू संगीन रत्यु हतुं के जेथी तेमने पो.. लाभ,लाह इत्यादि.आपणे आप्रकारतीजदीजी ताना आगमोने समजवा माटे संम्रुतनी सहायता लेवी ज . . खन पद्धतिओने ऐतिहालिक लेखनपद्धतिमओ मान पडती नहोती के जेथी तेनी तेना उपर असर पडे. परंतु वो जोडेपोवाशिणीवाटा सिद्धान्तका आथी उलटुं, जैनोना संस्कृत ग्रंथानी प्रतिभामा । - शब्दो जेवा लखेला घणा शब्दो मळी आवे छे. उपर प्रमाणे . ' - १ हु एन नथी कईतो के कोई पण शब्दना एक काळा मानतां पण केटलीक जोडीओ तो एवी मळी आवे छे. वहपां ज न होई शके बचे रूपोवाळा घणाए शल्दो जेने संस्कृतीकरणनी दृष्टिए पण समजावीशकाय तेम नाम्- - यया हो. परंतु प्रायः प्रत्येक शब्दना बछेत्रण त्रण रूपो उत. दारयने बदले मळतुं दारग एवं रूप लईए. आशा एक साथे प्रचलित रहेवानी वावतमा मने जरूर शंका न्दर्नु संस्कृत प्रतिरूप 'दारक' थायछे परंतु 'दारग' ५७ रहे छ. . थतुं नथी.
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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