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________________ जैनमेघदूतनी कालिदासना मेघदतना जेवां संदेशकाव्यो संस्कृतसाहित्यसृष्टिमां अनेक कविओनी कृतिरूपे भिन्न भिन्न नामे आविर्भूत थयां छे. आधुनिक भाषाओने बाद करी केवळ संस्कृत भाषामां ज आवां काव्योनी संख्या गणवा जइए तो पचीसथी पण वधारे मळी आवे छे. परंतु ते सर्वे दूतकाव्योमा मेघदतना जेवी छटा आवी शकी नथी. अने तेथी ते सर्वे काव्यो मेघदतना जेवी कीर्ति, स्थान के दीर्घायु मेळवी शक्यां नथी. मेघदतना भक्तोना जेटली संख्या कोइ पण दूतकाव्यनी मळती नथी. आ मेघदूतना अनुकरणमां सौथी प्रथम अनुकरण करनार जैनो छे. आम अनुकरणरूपे संस्कृत साहित्यमां जैन कविओद्वारा केटलांए संदेशकाव्यो जन्म पाम्यां छे. तेनुं उपलक दृष्टिए पण अवलोकन करवु आवश्यक छे. (१) पार्थाभ्युदय-जिनसेनाचार्यकृत (२) पवनदूत-वादि चंद्रकृत (३) जैनमेघदूत-मेरुतुंगाचार्यकृत रीके जन कविओ. (४) चंद्रदूत-जंबूकविकृत (५) नेमिदूत सांगणसुतविक्रमकृत (६) मनोदूत-नामविनानुं (७) मेघदूत-मंत्री विक्रमकृत (८) शीलदूत-चारित्रसुंदरगणिकृत (९) चेतोदूत-नामविनानुं (१०) मेघदूतसमस्यालेखमेघविजयोपाध्यायकृत (११) इंदुत-विनयविजयगणिकृत. आथी पण अधिक होवानो संभव छे. परंतु जाणवामां आव्यां नथी. आमांनां घणांखरां काव्यो प्रकट थयां छ तेमांनां जे मने मळी आव्यां छे तेमनो थोडो थोडो परिचय आपको उचित धार्यों छ. आ बधां अनुकरणोमा प्रथम पार्थाभ्युदय छे. आ ३६४ मन्दा क्रान्ता वृत्तोनुं एक खंडकाव्य छे. जिनसेनाचार्य, पर्धाभ्युदय. कालिदासना मेघदूतना जेटला श्लोको छे ते सर्वे एक अथवा बे चरणो लइने पोताना पार्थाभ्युदयना दरेक श्लोकमां ग्रथित करू छे. आज सूधी कालि. दासना मेघदूतनी समस्यापूर्ति दरेक कविए तेनुं अंतिम चरण लइने कार
SR No.010002
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorShilratnasuri, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages205
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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