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________________ निवेदन अने आभारप्रदर्शन । आ अपूर्व काव्य काव्यर्नु पठनपाठन करनारने अत्यंत उपयोगी होवाथी निर्णयसागर जेवा सर्वोत्तम छापखानामां छपावी प्रसिद्ध कर्यु छे. आ काव्यनुं संशोधन मुनि श्रीचतुरविजयजीए कर्यु छे अने तेनी हस्तलिखित बे प्रतिओ पण तेओए ज मेळवी हती. तेमांनी एक प्रति प्रवर्तक श्रीमत् कांतिविजयजी महाराजना पुस्तकसंग्रहनी हती. ते प्रतिनां कुल पत्रो ६६ हतां. पत्रनी दरेक पुंठीमां १४ लीटिओ हती. एटले तेनी बन्ने बाजुए मलीने २८ लीटिओ हती. आ प्रतिना अंतमां-"संवत् १९६६ मागसरवदि ९ बुध वारे" एवो लेख होवाथी आ प्रति नवीन छे अने ते जोइए तेवी शुद्ध न होती. • बीजी प्रति पाटणसंघना भंडारनी हती. तेनां २६ पत्रो हतां. तेनी दरेक पुंठीमा २४ लीटिओ लखेली हती. आ प्रतिना छेवटमां"संवत् १४९४ वर्षे वैशाखवदी. २ सोमे लेखकपाठकयोः शुभं भवतु ॥" एवो उल्लेख छे. तेथी आ प्रति टीका रचाया पछी त्रीजे ज वर्षे लखाएली छे, छतां जोइए तेवी शुद्ध नथी. परंतु उपरनी प्रति करतां घणी ज सारी छे. आ प्रतिमां टीकाकारनी प्रशस्तिनो ६ हो श्लोक नथी. प्रस्तुत काव्यनुं संशोधन तथा प्रुफ जोवानुं कार्य मुनिराज श्री चतुरविजयजीए निःस्वार्थबुद्धिथी घणी काळजी राखी करी आप्युं छे तेथी तेओश्रीनो अने पुस्तक आपनार महाशयोनो खरा अंतःकरणथी उपकार मार्नु छं. जो के आ काव्यनुं संशोधन सारी रीते थयुं छे छतां कोइ स्थळे पठनपाठन करनार महाशयने स्खलना देखाय तो सुधारी ले एटली प्रार्थना छे. आ काव्य उपर झुलासणनिवासी भाइ श्रीछोटालाल मगनलाल शाहे विस्तृत प्रस्तावना लखी आपी मने आभारी को छे तेथी ते महाशयनो पण उपकार मार्नु छ. सेकेटरी. श्रीजैन आत्मानंद सभा. भावनगर
SR No.010002
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorShilratnasuri, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages205
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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