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________________ प्रस्तावना. १७ आ सिवाय दूतटीकाकार टीकानी पीठिकामां मेघदूतना कर्त्ता तरीके आचार्यनो ज उल्लेख करे छे. आ सिवाय जीतकल्पसार अने ऋषिमंडल स्तोत्रना कर्त्ता तरीके मेरुतुंगने गणाववामां आवे छे, पण ते कया मेरुतुंग ते चोकस कही शकातुं नथी. वळी जैनग्रंथावळीमां बालावबोधव्याकरणना कर्त्ता साथे तेना उपर रचायेल आख्यातवृत्तिढुंढिका, कृद्वृत्तिटिप्पन अने प्राकृतवृत्तिना कर्त्ता तरीके पण मेरुतुंगनो उल्लेख छे. पण मने तो आ नोंधमां भ्रम लागे छे. कारण पोते मेरुतुंग सप्ततिकाभाष्यटीकानी प्रशस्तिमां लखे छे ते प्रमाणे बालबोधव्याकरण अने तेनी वृत्तिना कर्त्ता होवा जोइए. वळी बीजुं कारण व्याकरणकर्त्ताने पोते ज पोताना व्याकरणउपर एकवृत्ति सिवाय भिन्न भिन्न वृत्तिओ बनाववानुं प्रयोजन रहेतुं नथी. आ नोंधमां भ्रम थवानुं कारण एम कल्पी शकाय छे के नोंधनारना हाथमां व्याकरणना भिन्न भिन्न कटका हाथ आव्या होय अने ते दरेक उपर तेमनी वृत्ति तो होय, ते प्रमाणे दरेके जुदी जुदी नोंध करी लागे छे. आ सिवाय आ ग्रंथोनुं विस्तीर्ण स्पष्ट वर्णन तो तेमना रासना संपादन समये आपवानुं होवाथी अहीं आटलं संक्षेप सूचन करी विरमवुं ठीक लागे छे. आ काव्य उपर बे टीकाओ थयेली छे. एक आ काव्य साथे छपाइ छे ते, अने बीजी श्रीमहीमेरुगणीकृत छे. आ टीकाकार प्रकाशन पामती टीकाना कर्त्ता श्रीशीलरत्नसूर छे. टीकाना अवलोकनथी जणाय छे के टीकाकार व्याकरण, अलंकार अने न्यायशास्त्रमां व्युत्पन्न होवा जोइए. स्थळे स्थळे प्रयोगोनी सिद्धि व्याकरणद्वारा बहु स्पष्टताथी समजावी छे. टीका बहु सरल छे, जेथी अभ्यासीने अभ्यासमां मददगार निवडवा संभव छे. " टीकाकार आ महाकाव्यकर्त्ताना प्रशिष्य थाय छे. तेमना गुरुनुं नाम श्रीजयकीर्त्तिसूरि छे. तेओए आ टीका पाटणमां वि. सं. १४९१ ना चैत्रवदी ५ ने बुधवारे रची छे. तेनुं संशोधन श्रीमाणि -
SR No.010002
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorShilratnasuri, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages205
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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