SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ जैनमेघदूतनी दे. राजीमती सखीओनां उक्त वचनो सांभळी शोकनो त्याग करी केवळज्ञान पामेला प्रभुनी पासे जइ व्रतग्रहण करे छे. त्यां स्वामीना ध्यानथी तन्मयत्व-स्वामिमयत्व प्राप्त करे छे. अथवा जेम स्वामी रागद्वेष रहित छे तेम तेणे रागद्वेष विनानुं आत्मत्व प्रगटाव्युं. __ कवि अहीं काव्यने पुरुं करे छे. आ प्रमाणे आ संदेश महाकाव्य चार सर्गमां १९६ श्लोकोमा समाप्त थाय छे. ___ आ काव्यनी रचना नामसाम्य विना बीजी बधी रीते खतंत्र छे. कविए बीजां संदेश काव्योनी माफक कवि कालीदासना मेघदूतनी समस्यापूर्ति करी नथी. शैली, रचना, विभाग ए बधी बाबतोमां काव्य स्वतंत्र छे. काव्य प्रतिपदश्लिष्ट होवाथी क्लिष्ट छे. तेथी टीकानी साहाय्य विना अर्थ कहाडवो तुरतमां कठिन लागे छे. तो पण व्युत्पत्तिनी इच्छा राखनार विद्यार्थीने आ काव्य घणुं उपयोगी निवडवा संभव छे. पदलालित्य, अलंकारता अने प्रासादिकतामां आ काव्यथी कवि विक्रमर्नु नेमिदूत अने चारित्रसुंदरगणितुं शीलदूत चढी शके छ एम निष्पक्षपातपणे कहेवू पडशे. काव्यना गुणदोषनुं पृथक्करण करवानुं कार्य विद्वज्जनोनुं छे. काव्यकार मेरुतुंग जैन समाजमां मेरुतुंग नामना आचार्यों बे त्रण थया छे. तेमां ग्रंथकार तरीके तो बे ज अत्यार सूधीमां प्रसिद्धिमां आव्या छे. एक चंद्रप्रभशिष्य मेरुतुंग अन वीजा अंचलगच्छीय महेंद्रप्रभसूरि शिष्य मेरुतुंग. पहेला ग्रंथकारनी समयमर्यादा चौदमो सेको छे. अने बीजानी पदरमो सैको छे. आ बीजा मेरुतुंग छे ते आपणा काव्यकार छे. प्रथम आचार्य महापुरुषचरित अथवा उपदेशशत, प्रबंधचिंतामणी, विचारश्रेणी, धर्मोपदेश, थेरावली, षड्दर्शनविचार, विगेरे ग्रंथोना कर्ता तरीके सुप्रसिद्ध छे.' १ आ आचार्यविषे विशेष जाणवानी इच्छा राखनारे बॉम्बे ब्रॉन्च रॉयल . एशियाटिक सोसाइटी जर्नल इ. १८६७-६८ पृ.-१४७ जोवू.
SR No.010002
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorShilratnasuri, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages205
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy