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________________ इस प्रकार मध्याह्न तक हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्रों में, बलवान् लग्न में, अष्टम राशि, लग्न को छोड़ कर, प्रतिष्ठा का मुहूर्त बताया जाता है। देव स्थापना के विशेष लग्न् : स्थाप्यों हिरिर्दिन करो मिथुने महैर्शो । नारायणश्च युवतौ घटके विधाता ।। देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशनीयाः । क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः ।। मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए। कन्या लग्न में कृष्ण की, कुंभ लग्न में ब्रह्मा की द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए। चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है। लिंग स्थापन तु कर्त्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये । प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्। हेमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम् । WWW लक्ष्मीप्रद वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणमतम्॥Com यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणमतम् ।। श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम् ।। दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः ।। माघ, फाल्गुन - वैशाख - ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु । प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते ।। श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम् । देव्याः माघाश्विने मासेअप्युत्तमा सर्वकामदा ।। माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़ महीनों में शिव जी की प्रतिष्ठा सब प्रकार से सिद्धि देने वाली कही गयी है। श्रावण महीना भी शुभ है। ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में शिव लिंग की स्थापना से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है. जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है । इस प्रकार भगवती जगदंबा की प्रतिष्ठा माघ एवं आश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है। 93 http://www.ApniHindi.com
SR No.010000
Book TitleSaral Vastu
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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